आश्रम*[१] के पास चली आईं। उन्होंने देखा कि उस तपोवन में गुच्छे के गुच्छे फूल खिले हुए हैं और उनपर चारों ओर से भौंरें आ-आकर गूँज रहे हैं। वृक्षों पर चिड़ियाँ चहक रही हैं। तपोवन के तालाब में कमल, कुमुद आदि जल में उपजनेवाले फूल हवा के झोंके से हिलते हुए उस तालाब की ऐसी अनोखी शोभा बढ़ा रहे हैं मानो जल में और थल में फूलों का मेला है। अप्सराएँ विश्वामित्र के तपोवन के आगे स्वर्ग के सुख को भूल गईं।
विश्वामित्र हर घड़ी उस तपोवन में ही नहीं रहते थे। वे कभी हिमालय की चोटियों पर घूमते हुए प्रकृति की सुन्दरता देखते फिरते तो कभी तीर्थों की यात्रा कर हृदय को तृप्त करते; कभी एकान्त गुफा में समाधि लगाकर ब्रह्मानन्द का सुख लूटते और कभी तपोवन में आकर यज्ञ आदि किया करते।
अप्सराएँ उस तपोवन में निडर सरल मृगों को, तरह-तरह के जलचर पक्षियों से शोभायमान तालाब को, खिली हुई वनलताओं के सुहावने दृश्य को, फलदार हरे पेड़ों से लदी हुई वनभूमि की हरियाली को और सारसों से झलकते हुए नीले आकाश को देखकर स्वर्ग का सुख भूल गईं। पाँचों सखियाँ आनन्द से तपोवन में विचरा करतीं। भौंरों की गूँज और कोयलों की कुहुक में वे अपना स्वर मिलाकर गीत गातीं। नये बादल देखकर जब मोर पूँछ फैलाकर नाचने लगते तब वे भी घाँघरा फहराकर प्रेम से उन्हीं की तरह नाचने लगतीं। कभी-कभी जब फूलों का रस पीकर भौंरें, मतवाले होकर गूँजते फिरते तब वे उन्हें फूलों से उड़ाकर उनके पीछे-पीछे दौड़तीं। उस समय उनके गोरे-गोरे पैरों की नूपुर-ध्वन्नि
- ↑ * वर्तमान शाहाबाद (बिहार) ज़िले के बक्सर स्टेशन के पास चरित्रवन नामक स्थान।