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[ तीसरा
आदर्श महिला

राजा ऋतुपर्ण बहुत सिटपिटाये। कुछ सोच-विचार कर तय किया, "जब यहाँ आ गया हूँ तब एक बार विदर्भराज से मिल ही लेना चाहिए।" ऋतुपर्ण विदर्भ-राजधानी में आये।

राजा भीम को कोशल देश के राजा ऋतुपर्ण के आने का समाचार जानकर बड़ा अचरज हुआ। वे तुरन्त उनके पास गये। यथा-योग्य मिल-भेटकर बड़े आदर-मान से उनको वे राज-महल में ले आये। राजा भीम की आज्ञा से सारथि और घोड़ों के रहने का ठीक-ठीक बन्दोबस्त हुआ।

ऋतुपर्ण ने कहा---विदर्भराज! मुझे एक बड़ा ही चतुर सारथि मिला है। रथ पर घूमते-घूमते, एकाएक जी में आया कि बहुत दिन से आपसे भेंट नहीं हुई। इसी से आज बिना ख़बर दिये ही आपका मेहमान हो गया।

कोशलपति के आने का समाचार पाकर दमयन्ती के चित्त में एक नया भाव उठा। उसने अपनी प्यारी सखी केशिनी को बुलाकर कहा---केशिनी! तुम कोशलराज के सारथि को एक बार देख तो आओ।

केशिनी ने उस कुरूप और कुबड़े सारथि के पास जाकर बड़ी नम्रता से पूछा---महाशय! आप लोग कहाँ से और किस मतलब से यहाँ आये हैं? मुझे बतलाइए। मेरी सखी दमयन्ती इस बात को जानना चाहती हैं।

बाहुक---मेरे मालिक कोशलराज कल एक ब्राह्मण के मुँह से विदर्भ-राजकन्या के स्वयंवर की बात सुनकर आये हैं। मैं उनका सारथि हूँ।

केशिनी---महाशय! आपके साथ सारथि की पोशाक पहने हुए जो और एक आदमी है, वह कौन है?