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[ तीसरा
आदर्श महिला

अभागिनी पति के वियोग में बहुत दुःख पा रही हूँ; दया करके मेरा शोक तो मिटाओ। मुझे बता दो कि मेरे प्राणप्यारे कहाँ हैं।

शोक से व्याकुल दमयन्ती इस प्रकार विलाप करते-करते एक भयानक अजगर के मुँह में जा पड़ी। साँप को मुँह फैलाकर निगलने के लिए आते देखकर दमयन्ती का प्राण सूख गया। उस बेचारी ने सोचा कि हाय! हाय! मनुष्यों में देवतारूप प्राणनाथ की प्रेमभरी गोद से अलग होकर अन्त को साँप के मुँह में जाना पड़ा! महाराज के प्रति मेरा कर्तव्य अभी पूरा नहीं हुआ। इस प्रकार सोचकर वह जान लेकर भागी, किन्तु लगातार तीन दिन तक भूखी रहने से उसकी देह धीरे-धीरे बेक़ाबू हो गई थी। इससे दमयन्ती और भाग नहीं सकी। वह दुष्ट अजगर के मुँह के सामने जा पड़ी। अचानक एक व्याध ने वहाँ पहुँचकर, अजगर के मुँह में एक तेज़ हथियार मारा। साँप मारा गया। जान बचानेवाले के प्रति दमयन्ती एहसान प्रकट करने लगी।

अब दमयन्ती एक और नई आफ़त में पड़ी। दुष्ट बहेलिया दम- यन्ती को साँप के मुँह से बचाकर, उसके अनोखे रूप को देखते ही, बोला---अजी! मैं तुमको देखकर लट्टू हो गया हूँ। तुम मेरे ऊपर कृपा करो।

दमयन्ती ने कहा---तुमने मेरा प्राण बचाया है, तुमने मुझे साँप के मुँह से बचाकर नया जन्म दिया है, इसलिए तुम मेरे पिता-समान हो। तुम ऐसी बुरी बात क्यों कहते हो? मेरे आदर्श-चरित्र स्वामी मुझको छोड़कर चले गये हैं, उनके लिए मैं मौत से बढ़कर कष्ट पा रही हूँ। दया करके बताओ कि इस वन में तुमने उनको कहीं देखा है?

शिकारी चुप था। दमयन्ती की सुघड़ाई उसको मारे डालती थी। उसने कहा---अरी सुन्दरी! मैं नहीं समझता कि तुम क्या कहती