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[ तीसरा
आदर्श महिला

था जो पुष्कर से न हो सके। स्वार्थ के लिए वह सब कुछ कर सकता था।


[ ८ ]

पुष्कर जूआ खेलने में बड़ा चतुर था। वह बड़े भाई की अपार कीर्ति, राज्य के विस्तार और प्रजा के वश में रहने आदि को देखकर मन ही मन जलता रहता था। नल की देह में घुसे हुए कलियुग ने एक दिन पुष्कर से कहा---"पुष्कर! तुम नल के साथ जूआ खेलो। हम और द्वापर, दोनों तुम्हारी सहायता करेंगे। हम लोगों की सहायता से तुम नल को हराकर निषध का राज्य ज़रूर पा जाओगे।" कलि के बहकाने से पुष्कर ने, कुमति के चक्कर में पड़कर, बड़े भाई को जूआ खेलने के लिए लाचार किया।

पहले क्षत्रिय राजाओं में एक यह रीति थी कि युद्ध में हो चाहे जूए में हो, ललकारने से उतरना ही पड़ता था। महाराज नल क्षत्रियों की उसी रीति के कारण पुष्कर से जूआ खेलने लगे और कलि जूए के भीतर रहकर नल का सर्वनाश देखने लगा।

जूए की धुन सिर पर सवार होने से महाराज नल की बुद्धि भ्रष्ट हो गई। रात-दिन, खाना, पीना, सोना सब भूलकर वे सिर्फ़ जूआ ही जूआ खेलने लगे। धीरे-धीरे वे राज-पाट सब हार बैठे। अब सिर्फ़ वे रह गये और रह गई उनकी स्त्री रानी दमयन्ती।

पुष्कर ने जब देखा कि धीरे-धीरे बड़े भाई का सब कुछ मेरे हाथ में आ गया तब उसने प्रसन्न होकर कहा---मैंने तुम्हारा सब कुछ जीत लिया; अब तुम दाव पर दमयन्ती को रक्खो।

अब राजा नल को होश हुआ। वे सिंह की तरह गरजकर बोले-- अरे मनुष्यरूपी पिशाच! तेरी क्या यही भलमंसी है? तू जूए में अन्धा होकर, माता-समान भौजाई के ऊपर बुरा भाव रखता है!