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आख्यान ]
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दमयन्ती

भारत के अनेक राज्यों से आये हुए राजकुमार लोग अलग-अलग आसनों पर बैठे हैं। ऐसा जान पड़ता है मानो नीले आकाश में चमकनेवाले तारे उगे हुए हों। बढ़िया पोशाक पहने हुए खूबसूरत नौकर-चाकर सभा में सफ़ेद चँवर डुलाकर राजकुमारों का पसीना दूर कर रहे हैं। बीच-बीच में गुलाब-जल का फ़व्वारा चलता है। हवा फ़व्वारों के छींटों से ठण्डी होकर स्वयंवर-सभा को शीतल करती है। दर्शकों के बैठने के लिए सभा के चारों ओर मचान बनाये गये हैं।

शुभ मुहूर्त पर दमयन्ती ने स्वयंवर-सभा में प्रवेश किया। उसी समय राजमहल से स्त्रियों के गीत सुन पड़े। मेहराबों के पास ऊँचे मचान पर शहनाई बजने लगी।

जब दमयन्ती सभा में पहुँची तो हज़ारों पुरुषों की आँखें उस पर पड़ीं। उस भरी सभा में लोगों के ताकने से दमयन्ती का कलेजा धड़कने लगा। वह मन ही मन इष्टदेवता का स्मरण करके, सिर नीचा किये हुए, धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी।

सभा के सब राजकुमारों और दर्शकों ने आज राजकुमारी दमयन्ती के स्वयंवर के लायक श्रृंगार को देखकर सोचा कि यह विधाता की अनोखी कारीगरी का नमूना है। जान पड़ता है कि विधाता ने अपनी सृष्टि की सारी सुन्दरता मिलाकर इस शोभा की खानि को बनाया है। सभी राजपुत्र सोचने लगे कि देखें इस सुन्दरी के हाथ की जयमाल आज किस भाग्यवान के गले में पड़ती है।

राजपुरोहित की आज्ञा से तुरन्त शोर-गुल और बाजे बन्द हो गये। वैतालिकों (नक़ीबों) ने आकर राजकुमारों का परिचय देना और उनके गुणों का बखान करना शुरू कर दिया, किन्तु दमयन्ती के कान में नक़ीबों की एक भी बात नहीं जाती थी। दमयन्ती जिस देवता को ढूँढ़ती थी उस देवता का पता न पाकर वह राजकुमारों