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[ तीसरा
आदर्श महिला

इन्द्र ने अग्नि, वरुण और यम को सम्बोधन करके कहा---"नल की सुन्दरता और वैभव को देखने से जान पड़ता है कि दमयन्ती नल को ही जयमाल पहनावेगी। मैं चाहता हूँ कि किसी तरह, नल को स्वयंवर-सभा में न जाने दूँ। ऐसा होने से ही हम लोगों का काम बनेगा।" जब सब देवताओं को यह बात पसन्द हुई तब इन्द्र ने कहा---"देवताओ! नल विनयी और साधु पुरुष हैं। इसके सिवा वे बात के बड़े धनी हैं। अगर हम लोगों के दबाव डालने से नल दूत बनकर राजकुमारी के पास जाय और हम लोगों के इरादे को प्रकट करें तो राजकुमारी हम चारों में से किसी एक को अवश्य वर लेगी।" मनुष्य की बेटी पर अन्धे बने हुए देवताओं ने यह नहीं सोचा कि सूर्य की किरण से ही कमलिनी खिलती है; वसन्त की वायु बहने से ही प्रकृति के हृदय में प्रेम का अंकुर उगता है, और चन्द्रमा की किरण से ही चकोरी की प्यास बुझती है।

देवताओं ने अपना परिचय देकर नल से कहा---हे निषधराज! तुम हम लोगों को बहुत प्यारे हो। आशा है कि तुम हम लोगों की एक बात ज़रूर मानोगे।

नल ने नम्रता से कहा---देवताओं की आज्ञा पालने का मौक़ा मिलने से यह अधम धन्य होगा। कहिए, आप लोगों का कौन-सा प्यारा काम करूँ?

इन्द्र---हे प्रिय बोलनेवाले नल! तुम्हारी सुजनता पर हम लोग बहुत प्रसन्न हुए। हम लोग महासुन्दरी दमयन्ती को पाने के लिए स्वर्ग से आ रहे हैं। तुम दूत बनकर दमयन्ती से यह समाचार कहो और ऐसी कोशिश करो जिससे दमयन्ती हम चारों में से किसी एक के गले में जयमाल डाले।