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[ तीसरा
आदर्श महिला

और अपनी सखी के गले में डालने के लिए मालती की उम्दा माला गूँथती थीं।

दमयन्ती ने सोचा, कहीं इन्होंने हंस के साथ की मेरी बात-चीत को न सुन लिया हो। ये क्या निषध देश के राजा पुरुष-श्रेष्ठ नल की बात जानती हैं? दमयन्ती ने सखियों से पूछा---"निषध देश कहाँ है? और तुम लोगों ने राजा नल की भी कोई बात सुनी है?" एक सखी बोल उठी---"हाँ, उस दिन सुना था कि वे रूप में कामदेव, विद्या में बृहस्पति, बल में कार्त्तिकेय और न्याय करने में साक्षात् धर्म हैं। यदि विधाता की कृपा से वे हमारी सखी के--"इतना सुनते ही दमयन्ती ने उस सखी का मुँह दबाकर नक़ली कोप प्रकट किया, किन्तु उसके कोप में भी नज़र तिरछी थी; आँख की पुतली आनन्द से नाच रही थी और उसके कुँदरू से सुन्दर अोठों पर मुसकुराहट की झलक थी। असल बात यह है कि दमयन्ती सखियों से अपने को छिपा नहीं सकी।


[ ३ ]

क दिन राजा खा-पीकर आराम-कोठरी में पलँग पर लेटे थे कि रानी आकर उनके चरणों के पास बैठ गई। रानी ने स्वामी के दोनों पैर अपनी गोद में लेकर हाथ फेरते-फेरते कहा--महाराज! आज आपसे एक बात पूछनी है।

राजा--बताओ रानी! क्या पूछना है?

रानी--महाराज! दमयन्ती इतनी सयानी हो गई। आप उसके विवाह का कुछ बन्दोबस्त क्यों नहीं करते, यही मैं जानना चाहती हूँ।

राजा--रानी! मैं बहुतेरे राजपुत्रों को जानता हूँ, किन्तु कोई भी दमयन्ती के योग्य नहीं जँचता।