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की ओर बढ़ा। दाल और जारू गांवों के पास दोनों ओर की सेनाओं का आमना-सामना हुआ। पहले ही दिन भयानक युद्ध हुआ, जिसमें राजा हरनन्द, उसका पुत्र मोतीलाल और दिलेरखाँ मारे गए तथा अधिकाँश सेना युद्ध में कट मरी। अन्ततः अब्दुलनबीखाँ अपने भाई दिलेरखाँ की मृत्यु का बदला लेने के लिए क्रोध में भरकर युद्ध-क्षेत्र में आया। उसने अपने साथ चुने हुए ५०० योद्धा लिए थे, परन्तु युद्ध-क्षेत्र में पहुँचते-पहुँचते उसके अधिकाँश योद्धा बहाना बनाकर मार्ग में ही उसका साथ छोड़ते गए। जिस समय वह युद्ध-भूमि में पहुंचा तब कठिनाई से सौ योद्धा भी उसके साथ न थे। अली मोहम्मद की सेना राजा हरनन्द के खेमों को लूट रही थी और वह किसी सरदार से बातें कर रहा था। अब्दुलनबीखाँ अकस्मात् उनपर टूट पड़ा और शत्रु के बहुत से सैनिक शीघ्रता से काट डाले गए। अली मोहम्मद ने अपनी सेना की तुरन्त व्यवस्था की और अब्दुलनबी से डटकर मुकाबला किया। अन्त में अब्दुलनबी भी मारा गया। अली मोहम्मद विजय-दुन्दभी बजाता हुआ लौट गया। उसने अपने राज्य का विस्तार किया। उसकी सेना में एक लाख सैनिक थे। खजाने में तीन करोड़ चार लाख रुपये और एक करोड़ सोलह लाख सोने की मोहरें थीं। उसके पाँच वेटे थे। वे सब रुहेले प्रसिद्ध हुए। तीस वर्ष नवाबी करके कुछ महीने बीमार रहकर उसकी मृत्यु हो गई।

अवध के नवाब बहुत दिनों से रुहेलखण्ड को हथियाना चाहते थे, मगर जब कभी सब रुहेले-सरदार मिलकर युद्ध का डंका बजाते थे, तब उनकी संख्या अस्सी हजार पहुंचती थी। इसके सिवा वे वीर भी थे, अतः नवाब को उन्हें छेड़ने का साहस न होता था। जब नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों की धनलिप्सा को देखा, तो उसने वारेन हेस्टिग्स को लिखकर अंग्रेजी सेना की मदद मांगी। दोनों ने सलाह कर ली, और चालीस लाख रुपये और सेना का कुल खर्चा लेना स्वीकार करके अंग्रेजों ने भाड़े पर रुहेलों के विरुद्ध अपनी सेना देना स्वीकार कर लिया। रुहेलों से अंग्रेजों का कोई मतलब न था, न कुछ टण्टा था, इसके सिवा वे अन्य सूबेदारों की तरह बादशाह के अधिकार प्राप्त सूबेदार थे।

हेस्टिग्स ने कर्नल चैम्पियन की अधीनता में तीन ब्रिगेड अंग्रेजी सेना

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