गया। ऐसा प्रतीत होता था कि राजा शय्या पर सोने को जा रहे हैं।
अन्त में अपने बाल उठाये हुए राजा ने बधिक से कहा-"यदि ये तुम्हारे कार्य में बाधा डालें तो उन्हें बाँध सकते हो।" यह कहकर उन्होंने एक दृष्टि उस पर डाली। कैसी चितवन थी, शान्त और सौजन्य से परिपूर्ण!
बधिक आँख से आँख न मिला सका। उसने पीठ फेर ली। अरेमिस उसकी ओर ज्वालामय नेत्रों से देख रहा था।
राजा ने जब देखा कि मेरी बात का बधिक कुछ भी उत्तर नहीं देता है, तो उन्होंने फिर दुबारा वही प्रश्न किया।
बधिक ने भर्राई हुई आवाज में कहा-“यदि आप इन्हें गर्दन पर से हटा लें तब भी काम चल जायगा।"
राजा ने अपने हाथों से बालों को गर्दन के दोनों ओर इकट्ठा कर लिया और सिर काटने की लकड़ी देखकर बोले-"यह तो बहुत नीची दीखती है। क्या जरा ऊँची न हो सकेगी?"
"यह तो जैसी होती है, वैसी ही है।" बधिक ने कहा।
"क्या तुम्हें निश्चय है कि एक ही चोट से तुम मेरा सिर काट लोगे?"
"मुझे तो यही आशा है।"
"ठीक है। अच्छा, जरा सुनो तो।"
बधिक राजा की ओर चला और अपनी कुल्हाड़ी के बल झुक गया।
"मैं प्रार्थना करने को झुकूँगा, उसी समय मुझ पर चोट मत करना।"
"तो मैं कब चोट करूं?"
"जब मैं अपना सिर टिकटी पर रख दूँ और अपने हाथ फैला दूँ और कहूँ-'सावधान' मेरे कहते ही तुम जोर से चोट करना।"
बधिक ने झुककर स्वीकार किया।
राजा ने अपने पास खड़े लोगों से कहा- "संसार-त्याग करने का समय आ गया है। मैं तुम्हें मँझदार में छोड़े जाता हूँ और स्वयं उस देश में जाता हूँ, जहाँ से फिर कोई नहीं लौटता। विदा।"
उन्होंने अरेमिस की ओर देखा और सिर हिलाकर एक विशेष संकेत किया। उन्होंने कहा-"अब सब चले जाओ और मुझे प्रार्थना कर लेने दो।"
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