जनता की अपार भीड़ का है या समुद्र का? जनता उत्तेजित अवस्था में और समुद्र अपने तूफान के समय ही ऐसा कोलाहल करता है।
राजा के चारों ओर सिपाही खड़े हुए थे। उन्हें भय हुआ कि कहीं आहट होते ही अथस अपना काम शुरू न कर दे, इसीलिए वे मूर्तिवत चुपचाप खड़े रहे।
राजा का अनुमान ठीक था। अथस ठीक उनके नीचे था। राजा ने सुना कि वह संकेत पाने की बाट में है। कभी-कभी तो वह बेचैन होकर पत्थर काटने लगता था। पर कोई सुन न ले, इस भय से तुरन्त ही बन्द भी कर देता था। दो घण्टे तक यही भयानक क्रम चलता रहा। मृत्यु की निस्तब्धता उस बन्दीगृह में छा गई।
अथस ने सोचा, मैं देखू तो, लोगों ने कैसा शोरगुल मचा रखा है। वह परदा खोलकर पाड़ की पहली मंजिल में उतर आया। यहीं पाड़ थी। उसे शोरगुल अब और भी जोर-जोर से सुनाई देने लगा। वह पाड़ के किनारे पहुँचा और काले कपड़े को खोला। उसने देखा कि सिर काटने का यन्त्र तैयार है। उसके पीछे बन्दुकधारी सिपाही हैं।
अथस ने भयभीत हो मन ही मन कहा-"यह क्या मामला है?" आदमी बढ़े चले जा रहे हैं, सिपाही हथियारबन्द हैं? और ये दर्शक लोग खिड़की की ओर एकटक क्या देख रहे हैं? मैं डी आर्टगनन को भी देख रहा हूँ, वह क्या घूमता है? हे भगवान्, क्या बधिक भाग निकला?"
अचानक ढोल बजा। उसके सिर के ऊपर पैरों की भारी आवाज सुनाई दी। उसे ऐसा लगा जैसे व्हाइटहॉल में कोई जुलूस निकल रहा है। फिर उसने किसी को पाड़ पर उतरते भी सुना। आशा, भय और विस्मय उसे परेशान कर रहे थे। वह कुछ समझ नहीं सका।
भीड़ की गुनगुनाहट बिलकुल बन्द हो गई थी। सबकी आँखें व्हाइटहॉल की खिड़की की ओर लगी हुई थीं। अधखुले मुख और रह-रहकर साँस यह बताती थी कि कुछ अनिष्ट होने वाला है।
लोगों ने देखा कि एक आदमी चला आ रहा है। उसके हाथ में नरघाती कुल्हाड़ी थी। इसी से वह बधिक मालूम पड़ता था। तख्ते पर पहुँचकर उसने कुल्हाड़ी रख दी।
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