का कार्य समाप्त करके वह अपनी छोटी कोठरी में, जो फोर्ट विलियम में गंगा-तट की ओर बनी हुई थी, आकर भारतीय भाषाओं के सीखने में लग जाता था। अपने मित्रों के साथ काम कीही सब बातें करता था। दो वर्ष तक उसने फोर्ट विलियम कोठी में कार्य किया। अक्तूबर १७५३ में उसे कासिम बाजार की कोठी में जाकर काम करने की आज्ञा मिली। उस समय कासिम बाजार हुगली नदी के तट पर (गंगा और जलंगी दो नदियों के बीच स्थित) बंगाल का बहुत समृद्धशाली नगर था। दूर देशों से अनेक व्यापारी वहाँ एकत्र होते और व्यापार करते थे। अंग्रेज, फ्रांसीसी, डच, आमिनियन व्यापारियों की बड़ी-बड़ी कोठियाँ वहाँ बनी हुई थीं। रेशम के कारखाने, भारतीय जुलाहों की कपड़ों की दुकानें, बाजार में देश-देशान्तरों की वस्तुओं का क्रय-विक्रय, नदी-तट पर देशी-विदेशी वस्तुओं से भरे हुए जहाजों का आवागमन तथा सब देशों के व्यापारी अपनी-अपनी वेशभूषा में वहाँ आ वाणिज्य व्यवसाय करते थे। अतुल सम्पदा वहाँ भरी हुई थी।
कासिम बाजार में अंग्रेजों की कोठी में इंगलैंड से आया हुआ माल आता और बेचा जाता था। भारत में पैदा हुआ माल और बुना हुआ बढ़िया रेशमी कपड़ा इकट्ठा करके इंगलैंड भेजा जाता था। कोठियों की व्यवस्था एक कौंसिल करती थी। इसकी सुरक्षा के लिए छोटी-सी पल्टन भी रहती थी। हेस्टिग्स ने यहां आकर अपना कार्य-भार संभाल लिया। कासिम बाजार से दो मील दूर मुर्शिदाबाद था जो बंगाल, बिहार और उड़ीसा के नवाब की राजधानी थी। तत्कालीन नवाब सिराजुद्दौला यहाँ अपने महल में रहते थे। दीवानी-फौजदारी अदालतें भी यहीं थीं। हेस्टिग्स को कार्यवश मुर्शिदाबाद भी आना पड़ता था। यहाँ रेशमी माल बहुत मिलता था।
१२वीं शताब्दी में शहाबुद्दीन ने पृथ्वीराज चौहान को बन्दी करके दिल्ली की गद्दी गुलाम कुतुबुद्दीन को दी। उसके १० वर्ष बाद उसने अपने सेनापति बख्तियार खिलजी को बंगाल-विजय के लिए भेजा। उस समय
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