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और आनन्ददायक दीखता है, ठीक वही दशा इस समय उनकी थी। उनका सेवक पेरी अब भी अपने स्वामी के साथ था और कत्ल की आज्ञा सुनने के समय से ही रो रहा था।

चार्ल्स स्टुअर्ट मेज पर झुके हुए अपने तमगे की ओर देख रहे थे, जिस पर उनकी स्त्री और लड़की के चित्र अंकित थे। वे दोनों की प्रतीक्षा में थे--पहले जुक्सन की और फिर मृत्यु की। स्वप्न-जैसी दशा में वे फ्रेंच वीरों का स्मरण कर रहे थे। कभी-कभी वे स्वयं ही प्रश्न कर बैठते थे—क्या यह सब कुछ स्वप्न नहीं है? क्या मैं पागल हूँ?

अँधेरी रात थी। पास वाले चर्च से घण्टा बजने की आवाज आ रही थी। कमरे में मन्द प्रकाश फैला हुआ था। उन्हें कुछ प्रतिबिम्बित मूर्तियाँ दिखाई दीं, पर वास्तव में कुछ था नहीं। बाहर कोयले की आग जल रही थी, उसी का यह प्रतिबिम्ब था।

अचानक किसी के पैरों की आहट सुनाई दी। दरवाजा खुला और मशालों के प्रकाश से कमरा चमक उठा। श्वेत वस्त्र धारण किये हुए एक शान्त मूर्ति अन्दर आई।

"जुक्सन” चार्ल्स ने कहा- "धन्यवाद, मेरे अन्तिम बन्धु! तुम खूब मौके पर आये।"

पादरी ने सशंक भाव से कोने की ओर देखा, जहाँ पेरी सुबक-सुबककर रो रहा था।

राजा ने कहा-"पेरी, अब रोओ मत। पवित्र पिता हमारे पास आए हैं।"

पादरी ने कहा-“यदि यह पेरी है तो फिर डरने का कोई कारण नहीं! श्रीमान्, मुझे आज्ञा दीजिये कि मैं आपको अभिवादन करूं। आज्ञा हो तो मैं अपना परिचय भी दूँ और आने का कारण बताऊँ।"

आवाज को पहचानकर चार्ल्स चिल्लाने ही वाला था कि अरेमिस ने उसका मुँह बन्द कर दिया और झुककर अभिवादन किया।

चार्ल्स ने धीरे से कहा-"क्या तुम?"

"जी हाँ श्रीमान्, आपकी इच्छानुसार पादरी जुक्सन हाजिर है।"

"यहाँ कैसे आ पहुँचे? यदि वे तुम्हें पकड़ लें तो तुम्हारे टुकड़े-टुकड़े

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