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क्षमा कर दिया। उन्हें खेती करने के लिए जमीनें दीं। उन्हें यह अधिकार दे दिया कि उनके पहाड़ों से जो माल से लदी हुई गाड़ियाँ गुजरें, उन पर वे दो पैसे प्रति गाड़ी कर वसूल करें। इस तरह धीरे-धीरे अहिल्याबाई ने उन्हें शान्त और सुखी नागरिक बनाने की चेष्टा की।

महारानी अहिल्याबाई ने अपने राज्य में कई किले बनवाए। उसने विन्ध्याचल पर्वत पर, ऐसी जगह जहाँ पर कि पहाड़ जमीन से विल्कुल सीधा ऊपर को जाता है, बड़ी लागत पर एक सड़क बनवाई और चोटी के ऊपर जौम नाम का किला बनवाया। अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी माहेश्वर में बहुत-सा रुपया खर्च करके कई मन्दिर और धर्मशालाएँ बनवाईं। होलकर राज्य भर के अन्दर उसने सैकड़ों कुएँ खुदवाए। किन्तु उस की यह उदारता अपने राज्य तक ही परिमित न थी। उसने भारत के समस्त तीर्थ-स्थानों में द्वारिकापुरी से लेकर जगन्नाथ-धाम तक और केदारनाथ से लेकर रामेश्वरम् तक मन्दिर और धर्मशालाएँ बनवाई। साधुओं के लिए सदाव्रत खुलवाए। बनारस का प्रसिद्ध मणिकर्णिका घाट महारानी अहिल्याबाई का ही बनवाया हुआ है।

दक्षिण के अनेक दूर-दूर के मन्दिरों में मूर्तियों के स्नान के लिए प्रति-दिन गंगाजल पहुँचने का प्रबन्ध अहिल्याबाई ने अपने खर्च पर कर रखा था। वह रोज गरीबों को खाना खिलाती थी और विशेष त्यौहारों पर छोटी से छोटी जातियों के लिए खेल तमाशे और आमोद-प्रमोद का प्रबन्ध किया करती थी। गर्मी के मौसम में प्यासों को ठण्डा जल पिलाने का प्रबन्ध करती थी और जाड़े में गरीबों को कम्बल बँटवाती थी। नदियों में मछलियों को खाना खिलवाती थी और गर्मी के दिनों में उसके आदमी किसान के हल में जुते बैलों को रोककर पानी पिलाते थे। चूंकि किसान पक्षियों को अपने खेत से उड़ा देते हैं, इसलिए उसने पक्षियों के लिए फल के अनेक बाग लगवा दिए थे, ताकि पक्षी स्वतन्त्रतापूर्वक उसमें अपना पेट भर सकें।

इन्हीं कार्यों के कारण लोग उससे शत्रुता करना पाप समझते थे। इतना ही नहीं, वरन् किसी भी शत्रु के विरुद्ध अहिल्याबाई की सहायता करना अपना धार्मिक कर्तव्य समझते थे। अन्य राजा भी उसका आदर करते थे। दक्षिण के निजाम और टीपू सुल्तान अहिल्याबाई का उतना ही आदर

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