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प्रायः छः बजे शाम तक रहती थी। दरबार समाप्त होने के पश्चात् पूजा-पाठ और थोड़े से आहार के बाद नौ बजे रात को वह फिर दरबार में आ जाती थी और ग्यारह बजे रात तक काम करती रहती थी। इसके बाद अहिल्याबाई के सोने का समय होता था। इस दैनिक कार्यक्रम में सिवाय, व्रतों, विशेष त्यौहारों अथवा राज्य की विशेष आवश्यकताओं के कभी परि-वर्तन न होता था।

महारानी अहिल्याबाई के राज्य की समृद्धि और शान्ति अधिक प्रशंसनीय थी। इसका केवल एक कारण था और वह यह कि उसे प्रजा पर शासन करना ज्ञात था। अहिल्याबाई अपनी शान्त प्रजा के साथ दयावान्थी और अपनी उपद्रवी प्रजा के साथ उसका व्यवहार कड़ा, किन्तु न्याय-पूर्ण होता था। राज्य के मन्त्रियों को वह कभी नहीं बदलती थी।

इन्दौर पहले एक छोटा-सा गाँव था। अहिल्याबाई की ही विशेष कृपा से वह बढ़ते-बढ़ते एक विशाल सम्पन्न नगर हो गया।

अपने सामन्त-नरेशों के साथ महारानी अहिल्याबाई का व्यवहार अत्यन्त उदार होता था। सामन्त-नरेश अहिल्याबाई की इस उदारता का लाभ उठाकर कभी-कभी खिराज भेजने में असाधारण देर कर देते थे। किन्तु दो-चार बार अहिल्याबाई की कड़ी ताड़ना पाकर फिर भेज देते थे। कई छोटे-मोटे राजपूत सरदार अहिल्याबाई के राज्य में उपद्रव मचाकर लोगों को लूट लेते थे। अहिल्याबाई ने उन्हें प्रेम से जीतकर अपने राज्य के अत्यन्त शान्त और स्वामिभक्त नागरिक बना दिया।

अहिल्याबाई अपने राज्य में चारों ओर खुशहाली पैदा करने का अथक प्रयत्न करती थी। जब वह अपने राज्य के महाजनों, व्यापारियों, किसानों और काश्तकारों को उन्नति करते देखती, तो उसे बड़ी प्रसन्नता होती। उन पर टैक्स बढ़ाने के बदले महारानी अहिल्याबाई की उन पर कृपा बढ़ती।

सतपुड़ा घाट के गोंड और भील होलकर-राज्य में अक्सर उपद्रव मचाया करते थे। अहिल्याबाई ने पहले उनसे प्रेम से काम चलाना चाहा, किन्तु जब समझौते से कार्य न चला, तो उसे विवश होकर कई आदमियों को पकड़कर सूली पर लटकाना पड़ा। गोंड, भील उसके इस भीषण दण्ड को देखकर काँप गए। उन्होंने क्षमा की प्रार्थना की। उदार रानी ने उन्हें

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