नितान्त लज्जास्पद है, और मैं कभी इसमें अपनी सम्मति न दूंगी। उसने गंगाधर को भली-भाँति समझा दिया कि रानी और राज-माता की हैसियत से राज्य का शासन-प्रबन्ध करने का अधिकार केवल मुझे है, किसी अन्य को नहीं।
अहिल्याबाई ने राघोवा को भी सूचना भेज दी कि एक स्त्री से युद्ध छेड़ने में आपके पल्ले कलंक पड़ सकता है, प्रतिष्ठा नहीं। होलकर-राज्य की समस्त प्रजा अहिल्याबाई के पक्ष में थी।
राघोवा ने इसे अपना अपमान समझा। वह इसका बदला खून से लेने को तैयार हो गया। अहिल्याबाई भी शान्त होकर नहीं बैठी। होलकर राज्य में राघोवा के विरुद्ध युद्ध का ऐलान कर दिया गया। राज्य की समस्त सेना अपनी राज-माता के अपमान का बदला लेने को तैयार हो गई; विशेषकर जब सैनिकों को यह ज्ञात हुआ कि अहिल्याबाई स्वयं युद्ध के मैदान में अपनी सेना का नेतृत्व अपने हाथों में लेंगी, तो सैनिकों के उत्साह का पारावार न रहा। अहिल्याबाई ने अपने हाथी पर रत्न-जटित हौदा कसवाया। हौदे के चारों कोनों पर बाणों से भरे हुए तूणीर और चार धनुष रखवाए।
परिस्थिति गम्भीर होते देखकर महादजी सिंधिया और जन्नोजी भोंसले ने राघोवा का विरोध किया। उधर स्वयं पेशवा ने राघोवा को आज्ञा दी कि तुम अहिल्याबाई के विरुद्ध कोई कार्य न करो। राघोवा ने परिस्थिति विपरीत देखकर अहिल्याबाई के विरुद्ध युद्ध करने का विचार छोड़ दिया।
अपनी असाधारण क्षमता से प्रेरित होकर अहिल्याबाई ने राघोवा को राजधानी में बुलाकर आदर-सत्कार किया और गंगाधर यशवन्त को भी फिर बहाल कर दिया गया।
गद्दी पर बैठने के बाद अहिल्याबाई ने तुकाजी होलकर को अपना सेनापति नियुक्त किया और आज्ञा दी कि सेना को भली-भाँति संगठित किया जाय।
सेना के संगठित हो जाने पर अहिल्याबाई ने अपनी समस्त शक्तियाँ राज्य-प्रबन्ध की ओर लगा दी। मालवा और नीमाड़ का कर अहिल्याबाई
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