यह पृष्ठ प्रमाणित है।

की नींव डाल रहा था। उस समय मालवे का शासन महारानी अहिल्याबाई के हाथों में था। अहिल्याबाई अंग्रेजों की कूटनीति भली-भाति समझती थी और उसने इसका भारी विरोध किया। अत: वारेन हेस्टिग्स को पेशवा के विरुद्ध सिंधिया को फोड़ना पड़ा। उस समय होलकर और सिंधिया मराठा-साम्राज्य के सबसे अधिक शक्तिशाली सदस्य थे। महादजी सिंधिया ग्वालियर पर शासन कर रहा था और मल्हरराव होलकर मालवे और बुन्देलखण्ड पर।

मलहरराव होलकर के कुण्डीराव नामक एक ही पुत्र था, किन्तु वह असमय में ही कुम्भेरू की लड़ाई में मारा गया। कुण्डीराव का विवाह सिंधिया-परिवार की एक लड़की अहिल्याबाई के साथ हुआ था। अहिल्या-बाई की दो सन्तानें थीं। मालीराव पुत्र और मुक्ताबाई कन्या। मलहरराव की मृत्यु के पश्चात् उसका पौत्र मालीराव होलकर राज्य का स्वामी हुआ। किन्तु दुर्भाग्यवश मालीराव सिंहासन पर बैठने के नौ महीने बाद स्वर्गवासी हुआ। मालीराव निस्सन्तान मरा। अतः राज्य का सारा भार अहिल्याबाई के कन्धों पर आकर पड़ा।

सिंहासन पर बैठते ही अहिल्याबाई को एक विकट कठिनाई का सामना करना पड़ा। उसका गद्दी पर बैठना उसके एक ब्राह्मण मन्त्री गंगाधर यशवन्त को बहुत बुरा लगा। राघोवा दादा उस समय पेशवा की मध्य-भारत की सेना का प्रधान सेनापति था। गंगाधर ने राघोवा के सामने अपनी यह योजना पेश की कि अहिल्याबाई अपने एक दूर के रिश्ते के छोटे से लड़के को गोद ले--स्वयं गद्दी पर बैठने का इरादा छोड़ दे व गंगाधर उस लड़के का वारिश बनकर राज्य-भार सँभाले। इस कार्य के उपलक्ष में राघोवा को गंगाधर ने एक बहुत बड़ी रकम नजराने में देने का वादा किया। किन्तु अहिल्याबाई के सद्गुणों और प्रतिभा से उसकी प्रजा भली-भांति परिचित थी। इसलिए प्रजा कहीं असन्तुष्ट न हो जाय, इसका भय भी गंगाधर को था। फिर भी राघोवा ने गंगाधर की इस योजना पर अपनी स्वीकृति दे दी।

किन्तु गंगाधर को अपनी भूल शीघ्र मालूम हो गई। जब उसने अहिल्याबाई को इस सारे विषय की सूचना दी, तो अहिल्याबाई ने उत्तर दिया कि तुम्हारी इस योजना को स्वीकार करना होलकर वंश के लिए

६३