दूसरे अभियुक्त मोहम्मद खाँ दोषी पाए गए। फिर भी हेस्टिग्स ने उन्हें रिहा कर दिया। परन्तु उसको पदच्युत कर एक अंग्रेज मिडिलटन को उनके स्थान पर नायब बनाया गया। हेस्टिग्स ने अधिक पैदावार और उपज, मालगुजारीअदा करने और वसूल करने के उचित नियम तथा किसानों का ऋण के बोझ से न दबे रहने सम्बन्धी सुधारक कार्य किए। जुलाहों को यह भी दी कि वे अपना माल अपनी इच्छा के अनुसार चाहे कम्पनी को दें अथवा अन्य किसी को। उन दिनों नागा जाति तिब्बत, चीन, काबुल के पर्वतीय प्रदेशों में रहती और स्वच्छन्द विचरण करती रहती थी। ये लोग नंगे रहते थे। विचरण करते समय किसी भी स्वस्थ बालक को देखकर वे उसे बहकाकर अपने साथ कर लेते थे और नागा बना लेते थे। ये लोग तीर्थस्थानों में धार्मिक पर्वो के अवसर पर बड़ी संख्या में आते थे। बंगाल से वे प्रतिवर्ष बहुत से बालकों को उठाकर ले जाते थे, अतः हेस्टिग्स ने उनका बंगाल में प्रवेश वर्जित कर दिया। बंगाल-प्रवेश के नाकों पर सैनिक पहरा रहने लगा। भूटान, तिब्बत, सिक्कम और कूच बिहार के साथ कम्पनी के सम्बन्ध सुधारे तथा व्यापार किया।
हेस्टिग्स ने मुर्शिदाबाद में स्थापित फौजदारी और दीवानी अदालतें हटाकर कलकत्ता में स्थापित की। दीवानी अदालत का नाम 'सदर दीवानी' रखा गया। गवर्नर और दो सदस्य उसके न्यायाधीश बने। 'सदर दीवानी' के नीचे प्रत्येक जिले में एक-एक फौजदारी और दीवानी अदालतें खोली गईं। फौजदारी अदालतों में तो मुसलमान न्यायाधीश नियत किए गए, परन्तु दीवानी अदालतों में हिन्दू न्यायाधीश नियत हुए क्योंकि हिन्दू धर्मशास्त्रों के नियम और विधान वे ही समझ सकते थे। हेस्टिंग्स ने हिन्दू शास्त्रों के विधान का दस हिन्दू विद्वानों से संकलन कराकर उसे फारसी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित किया। 'सदर दीवानी' सुप्रीम कोर्ट कहलाती थी। फौजदारी अदालतों को प्राणदण्ड की सजा देने से पहले सुप्रीम कोर्ट से आज्ञा लेनी होती थी। जिले की अदालतों की आज्ञा के विरुद्ध अपीलें भी इसी सुप्रीम कोर्ट में होती थीं।
सुप्रीम कोर्ट में प्रजा का हित होने की कोई आशा नहीं होती थी। भारतीय अमीरों को अपमानित करना ही उसका ध्येय था। उसमें झूठी
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