चिन्ताओं से मुक्ति मिल सकती है।"
इमहाफ की आँखों से आँसू झरने लगे। परन्तु हेस्टिग्स ने उस ओर ध्यान न देकर कुछ स्वर्णं मोहरें उनके सामने बखेर दीं। उन्होंने इमहाफ के हाथ अपने हाथों में लेकर कहा-“सौन्दर्य मूर्ति और कमनीय मिसेज इमहाफ के सुखी भविष्य के लिए आप यह स्वीकार कीजिए।"
वह उठकर चले गये। इमहाफ आँसू भरे उन विखरी स्वर्णमुद्राओं को देखते रह गए।
मिसेज इमहाफहेस्टिग्स के घर आ गईं। इमहाफ भी वहीं रहने लगे, क्योंकि नियम के अनुसार अभी इमहाफ को अपनी पत्नी के तलाक की स्वीकृति देनी शेष थी। मिसेज इमहाफ ने हेस्टिंग्स के परामर्श और व्यय से फ्रेंकोनियन कोर्ट में तलाक की दरखास्त भेज दी। जब तक उसकी कार्यवाही पूर्ण नहीं हो जाती, जब तक लोकाचार के कारण इमहाफ को दिल पर पत्थर रखकर अपनी पत्नी का पति बने रहकर समय व्यतीत करना था। इस समय हेस्टिग्स की आयु चालीस वर्ष की थी।
मद्रास में उन्हें डूप्रे का सहायक बनकर कार्य करना पड़ा। उस समय कम्पनी के अधिकारी मैसूर के शासक हैदरअली के विरुद्ध षड्यन्त्रों का जाल रच रहे थे। बंगाल, बिहार और उड़ीसा के बाद अब दक्षिण अंग्रेजों का अभिमान क्षेत्र था। परन्तु हेस्टिंग्स की दृष्टि इस ओर न थी। वह कम्पनी के व्यापार को अधिक लाभदायक बनाने के उपाय सोच रहा था। मद्रास में वह कम्पनी की कोठी का गुमाश्ते था। इंगलैंड भेजने के लिए जो भारतीय माल खरीदा जाता था, उसके जमा-खर्च और लदान का उत्तरदायित्व उन पर था। कम्पनी के कर्मचारी राजनैतिक स्वार्थों में फंसे रहते थे, व्यापार की ओर उनकी व्यवस्था ठीक नहीं थी। जुलाहों से घटिया माल तैयार कराकर बढ़िया माल के दाम बहीखातों में दिखाकर बाकी रुपया आपस में बाँट लेते थे। वे जुलाहों को जबरदस्ती पेशगी रुपये देकर घटिया माल तैयार कराते और लागत-मात्र का मूल्य उन्हें देते। इससे कम्पनी के कर्मचारी तो मालामाल होते गये, परन्तु जुलाहे गरीब होते गये। उन्हें ऋण भी लेना पड़ जाता था। दलाल अधिक रिश्वत लेकर कम्पनी को भारतीय माल खरीदवाते थे। माल की चौकसी भी ठीक नहीं होती थी। इन कारणों से
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