हेस्टिग्स यह सुनकर विमूढ़ हो गए। उन्होंने बहन को कसकर पकड़ लिया। उन्होंने कहा-"मुझे संभालो, मैं गिर रहा हूँ।"
बहन ने उनके दुख को धीरे-धीरे कम किया। हेस्टिग्स इंगलैंड में रह। कर कम्पनी के कर्मचारियों को अधिक शिक्षित करने के उपाय करने लगे। उन्होंने वहाँ एक ट्रेनिंग कालिज खुलवाया, जिसमें भारत में जाकर नौकरी करने वाले अंग्रेजों को हिन्दी, उर्दू, फारसी भाषा की शिक्षा देकर वहाँ की कार्य-प्रणाली सिखाई जाती थी।
हेस्टिग्स जो रुपया भारत से कमाकर ले गए थे, धीरे-धीरे सब खर्च हो गया और चार वर्ष बीतते-बीतते उन्हें अर्थसंकट रहने लगा। उन्होंने फिर भारत आने के लिये प्रयत्न किया। भाग्य से मद्रास की कोठी के लिए एक सुयोग्य व्यक्ति की आवश्यकता थी। हेस्टिंग्स को उस पद पर नियुक्त करके भेजा गया। सन् १७६६ में ड्यूक ऑफ ग्रंफटन नामक जहाज पर उन्होंने भारत यात्रा की। इसी जहाज में एक जर्मन यात्री बेरनइमहाफ भी भारत आ रहे थे। उनकी अत्यन्त सुन्दर पत्नी भी उनके साथ थी। जहाज प्रवास में उनकी पत्नी का हेस्टिग्स से प्रेम-भाव उत्पन्न हुआ। मद्रास पहुँचकर हेस्टिंग्स बीमार पड़ गए, जिसमें इमहाफ पत्नी ने उनकी सेवा-सुश्रूषा की। इस समय तक दोनों में प्रगाढ़ प्रेम हो चुका था। इमहाफ उन दिनों घोर अर्थकष्ट में थे तथा अपनी सुन्दर पत्नी की इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पाते थे।
हेस्टिग्स और इमहाफ की पत्नी ने परस्पर विवाह करने का निश्चय किया।
एक दिन इमहाफ को बहुत अधिक चिन्ताग्रस्त देखकर हेस्टिंग्स ने कहा -"मैं आपको चिन्तामुक्त कर सकता हूँ।"
इमहाफअपनी पत्नी के विश्वासघात से दुखी तो थे ही, उन्होंने विरक्त मन से पूछा-"कैसे?"
"आपकी पत्नी को ग्रहण करके।"
इमहाफ कठोर दृष्टि से हेस्टिग्स को देखने लगे।
"पर इसमें आपका ही हित है। अब वह आपको प्रेम नहीं करती, मुझे करती है। मैं आपको उस पत्नी का मूल्य दे सकता हूँ, आपको उसकी सब
५०