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ली। धीरे-धीरे नवाब के सभी नगरों पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। पटना और मुंगेर का भी पतन हुआ। कासिम भागकर अवध के नवाब शुजाउद्दौला की शरण गया। एक बार अवध के नवाब की सहायता से पटना और बक्सर में फिर युद्ध हुआ। परन्तु विश्वासघात और घूस की घोर ज्वाला ने मुसलमानी तख्त का विध्वंस किया। इस बार प्रयाग तक मीरकासिम खदेड़ा गया। फल यह हुआ कि प्रयाग भी अंग्रेजों के हाथ आ गया।

मीरकासिम का क्या हाल हुआ, यह नहीं कहा जा सकता। दिल्ली की सड़क पर एक दिन एक लाश देखी गई थी-जो एक बहुमूल्य शाल से ढकी हुई थी। उसके एक कोने पर लिखा था-'मीरकासिम।

मीरजाफर फिर नवाब बन गया। अंग्रेजों ने कासिम की लड़ाई का सब खर्चा और हर्जाना मीरजाफर से वसूल किया। सबको भेट भी यथा-योग्य दी गई। बंगभूमि के भाग्य फूट गये। उसके माथे का सिन्दूर पोंछ लिया गया।

मराठों ने प्रथम ही बंगाल को छिन्न-भिन्न कर दिया था। अब इस राज्य-विप्लव के पश्चात् मानो बंगाल का कोई कर्ता-धर्ता ही न रहा। मीरजाफर फिर गद्दी से उतारकर कलकत्ते भेज दिया गया। इस बार किसी को नवाब बनाने की जरूरत न रही। ईस्ट इण्डिया कम्पनी बहादुर ही बंगाल की मालिक बन गई।


पाँच

हेस्टिग्स तेजस्वी और कर्मठ युवक था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अन्य गुमाश्तों की भाँति वह रिश्वत और अन्याय को पसन्द नहीं करता था। क्लाइव के साथ युद्ध में भाग लेकर उसने अपने देश के प्रति पवित्र कर्तव्य निभाया था। उसने जिस विधवा से विवाह किया था, वह दो पुत्र छोड़कर स्वर्गवासिनी हुई। हेस्टिग्स ने पिता की भाँति पुत्रों की देखभाल की। परन्तु

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