करता था। साथ ही अंग्रेजों के अत्याचार से प्रजा की रक्षा करने की सदा चेष्टा करता था।
जब उसने देखा कि अंग्रेज बिना महसूल अन्धाधुन्ध व्यापार करके देश को चौपट कर रहे हैं, किसी तरह नहीं मानते, तो उसने अपनी लाखों की हानि की परवा न करके महसूल का महकमा ही उठा दिया; प्रत्येक को विना महसूल व्यापार करने का अधिकार दे दिया। अंग्रेजों ने नवाब के इस न्याय और उदार कार्य का तीव्र विरोध किया, पर कासिम ने उसकी कुछ परवा न की।
अब अंग्रेज कासिम को भी गद्दी से उतारने का प्रबन्ध करने लगे, पर मीरजाफर की तरह कासिम अंग्रेजों का पालतू न था। उसने सन्धि की शों का पालन न होते देखकर अपनी तैयारी शुरू कर दी। पहले तो वह अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से उठाकर मुंगेर ले गया, और सेना को सज्जित करने लगा—साथ ही अवध के नवाब शुजाउद्दौला से सहायता के लिए पत्र-व्यवहार करने लगा।
इतने ही में अंग्रेजों ने चुपचाप पटने पर धावा कर दिया। पहले तो नवाबी सेना एकाएक हमले से घबराकर भाग गई, पर वाद में उसने आक्रमण कर नगर को वापस ले लिया। बहुत-से अंग्रेज कैद हो गये। बदमाश एलिस भी कैद हुआ। नवाब ने जब पटने पर एकाएक आक्रमण होने के समाचार सुने, तो उसने अंग्रेजों की सब कोठियों पर अधिकार करके, वहाँ के अंग्रेजों को कैद करके मुंगेर भेजने का हुक्म दे दिया।
अंग्रेजों ने चिढ़ कलकत्ते में आप-ही-आप मीरजाफर को फिर नवाब बना दिया। इसके पीछे मुर्शिदाबाद सेना भेज दी गई। मुर्शिदाबाद को यद्यपि मीरकासिम ने काफी सुरक्षित कर रखा था, फिर भी विश्वास-घाती, नीच और स्वार्थी सेनापतियों के कारण नवाबी सेना की हार हुई। नवाब के दो-चार वीर सेनापति अन्त तक लड़कर धराशायी हुए। अन्त में उदयालन का मुख्य युद्ध हुआ। पलासी में मीरजाफर सेनापति था। यहाँ विश्वासघाती गुरगन सेनापति बना। नवाब की ५० हजार सेना उसके आधीन थी। उस पर अंग्रेजों के सिर्फ ५ हजार सैनिकों ने ही विजय प्राप्त कर
४७