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१० हजार सिपाहियों को १ वर्ष तक के लिये काफी था। फिर भी क्लाइव विश्वास और अविश्वास के बीच में झकझोरे ले रहा था।

वह बड़ा ही भयभीत था। यदि कहीं हार जाता तो हार का समाचार ले जाने के लिए भी एक आदमी को जिन्दा वापस जाने का मौका नहीं मिलता।

२२ जून को गंगा पार करके मीरजाफर के बनाये संकेतों पर वह आगे और रात्रि के दो बजे पलासी के लक्खीबाग में मोर्चे जमाये। नवाब का पड़ाव उसके नजदीक ही तेजनगरवाले विस्तृत मैदान में था। परन्तु उसकी सेना का प्रत्येक सिपाही मानो उसका सिपाही न था। वह रात-भर अपने खेमे में चिन्तित बैठा रहा।

रात बीती। प्रभात आया। अंग्रेजों ने बाग के उत्तर की ओर एक खुली जगह में व्यूह-रचना की। नवाब की सेना मीरजाफर, दुर्लभराय, यारलतीफखाँ--इन तीन नमकहरामों की अध्यक्षता में अर्द्धचन्द्राकार व्यूह-रचना करके बाग को घेरने के लिये बढ़ी।

अंग्रेज क्षण-भर को घबराये। क्लाइव ने सोचा कि यदि यह चन्द्र-व्यूह तोपों में आग लगा दे, तो सर्वनाश है। पर जब उसने उस सेना के नायकों को देखा तो धैर्य हुआ। क्लाइव की गोरी पल्टन चार दलों में विभक्त हुई, जिसके नायक क्लिप्याट्रिक, ग्राण्ट क्रट और कप्तान गप थे। बीच में गोरे, दाएं-बाएँ काले सिपाही थे। नवाब की सेना के एक पार्श्व में फ्रेंच-सेनापति सिनफे, एक में मोहनलाल और उनके बीच में मीरमदन। फौजकशी का भार मीरमदन ने लिया। अंग्रेजों ने देखा--नवाब का व्यूह दुर्भेद्य है।

प्रातः आठ बजे मीरमदन ने तोपों में आग लगाई। शीघ्र ही तोपों का दोनों ओर से घटाघोप हो गया। आधे घण्टे में १० गोरे और २० काले आदमी मर गये। क्लाइव की युद्ध-पिपासा इतने ही में मिट गई। उसने समझ लिया, इस प्रकार प्रत्येक मिनट में एक आदमी के मरने और अनेकों के जख्मी होने से यह ३०० सिपाही कितनी देर ठहरेंगे? क्लाइव को पीछे हटना पड़ा। उसकी फौज ने बाग के पेड़ों का आश्रय लिया। वे छिपकर गोले दागने लगे। पर उनकी दो तोपें बाहर रह गईं। चार तोपें बाग में थीं। नवाब की तोपों का मोर्चा चार हाथ ऊँचा था। अतएव मीरमदन की तोपों

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