अब्दाली की फौज से लड़ने को कूच करेगा। तव राजधानी पर हमला करना उत्तम होगा।
क्लाइव तत्काल लौट गया, और नवाब को अंग्रेजों ने लिखा—"हम तो सेना लौटा लाये। अव आपने पलासी में क्यों छावनी डाल रखी है?" जो दूत इस पत्र को लेकर गया था, वह वाट्सन साहब के लिये यह चिट्ठी भी ले गया—"मीरजाफर से कहना, घवराये नहीं। मैं ऐसे ५ हजार सिपाहियों को लेकर उसके पक्ष में आ मिलूंगा, जिन्होंने युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई।"
परन्तु अहमदशाह अब्दाली वापस लौट गया, इसलिये नवाब को पटना जाना ही नहीं पड़ा। इसके सिवा उसने अंग्रेजों की जाली नौकाएँ रोक लीं, और पलासी में ज्यों-की-त्यों छावनी डाले रहा। अंग्रेजों के पीछे गुप्तचर छोड़ दिये दिये। फ्रान्सीसियों को भागलपुर ठहरने को कहला भेजा, और मीरजाफर को १५ हजार सेना लेकर पलासी में रहने का हुक्म दिया।
इधर मीरजाफर से एक गुप्त सन्धि-पत्र लिखाकर १७ मई को कलकत्ते में उस पर विचार हुआ। इस सन्धि-पत्र में एक करोड़ रुपया कम्पनी को, दस लाख कलकत्ते के अंग्रेजों, अरमानी और बंगालियों को, तीस लाख अमीचन्द को देने का मीरजाफर ने वादा किया था। इसके सिवा बगावत के प्रधान सहायकों और पथ-प्रदर्शकों की रकमें अलग एक चिट्ठ में दर्ज की गई थीं। राजकोष में इतना रुपया नहीं था। परन्तु रुपया है या नहीं इस पर कौन विचार करता? चारों ओर लूट ही तो थी!
मसौदा भेजते समय वाट्सन साहब ने लिखा—"अमीचन्द जो माँगता है, वही मंजूर करना। वरना, सब भण्डाफोड़ हो जायगा।"
पहले तो अमीचन्द को मार डालने की ही बात सोची गयी। पीछे क्लाइव ने युक्ति निकाली। उसने दो दस्तावेज लिखाये—एक असली, दूसरा जाली लाल कागज पर। इसी जाली पर अमीचन्द की रकम चढ़ाई गई थी। असली पर उसका कुछ जिक्र न था। वाट्सन ने इस जाली दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। पर, चतुर क्लाइव ने उसके भी जाली दस्तखत बना दिये।
धोखे से काम निकालने में क्लाइव को ज़रा भी संकोच न होता था,
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