से काम ले रहे थे, और उधर नवाब को सिंहासन से उतारने की तैयारी कर रहे थे।
चन्दननगर पर अधिकार होते ही क्लाइव ने सवको समझा दिया था कि बस, इतना करके बैठे रहने से काम न चलेगा-कुछ दूर और आगे बढ़कर नवाब को गद्दी से उतारना पड़ेगा। उसके इस मन्तव्य से सब सहमत हुए।
अंग्रेजों ने गहरी चाल चली। घूस की मदद से नवाब के उमरावों द्वारा यह वात नवाब से कहलाई कि फ्रांसीसियों के कासिम बाजार में रहने से शान्ति-भंग होने की आशंका है, आप इन्हें पटना भेज दें-वहाँ यह सुरक्षित रहेंगे। नवाब ने इस बात को साधारण समझकर फ्रेंच सेनापति लॉस को पटना जाने का हुक्म दे दिया। लॉस एक बुद्धिमान अफसर था। उसने कुछ दिन दरबार में रहकर सब व्यवस्था भली-भाँति जांच ली थी। उसने नवाव से कहा—
"आपके बजीर और फौजी सरदार सव अंग्रेजों से मिले हैं, और आपको गद्दी से उतारने की कोशिश कर रहे हैं; केवल फ्रांसीसियों के भय से खुलने का साहस नहीं करते। हमारे हटते ही युद्धानल प्रज्वलित होगी।" नवाब ने सव बात समझकर भी लाचार हो कहा—"आप लोग भागलपुर के पास रहें, मैं बगावत की सूचना पाते ही आपको खबर दूंगा।"
सेनापति लॉस ने आँखों में आँसू भरकर सिर्फ इतना ही कहा—“यही अन्तिम भेंट है-अब हमारा आपका साक्षात न होगा।"
नवाब ने नमकहराम मानिकचन्द को अपराधी पाकर कैद कर लिया। परन्तु पीछे बहुत अनुनय-विनय कर, १० लाख रुपये दे, छूट गया। उसके छूटने से ही भयंकर षड्यन्त्र की जड़ जमी।
इससे जगतसेठ, अमीचन्द, रायदुर्लभ आदि सभी भयभीत हुए— और जगतसेठ का भवन गुप्त-मन्त्रणा का भवन बना। जैन जगतसेठ, मुसलमान मीरगंज मीरजाफर, वैद्य राजवल्लभ, कायस्थ रायदुर्लभ, सूदखोर अमीचंद और प्रतिहिंसा परायण मानिकचंद—इनमें से न किसी का मत मिलता था, न धर्म, न स्वभाव, न काम। वे केवल स्वार्थान्ध होकर एक हुए। उनके साथ ही कृष्णनगर के राजा महाराजेन्द्र कृष्णचन्द्र भूप बहादुर भी मिले। जब
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