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मेरी प्रजा हैं। मैं कदापि अपने आश्रितों पर तुम्हारा कोई अत्याचार न होने दूंगा। क्या यही तुम्हारी शान्ति-प्रियता है? अंग्रेज चुप हो गये। नवाब ने कलकत्ते से प्रस्थान किया, पर मार्ग में ही उसे समाचार मिला कि अंग्रेज फ्रांसीसियों का चन्दननगर लूटने की तैयारियां कर रहे हैं। नवाब ने वाट्सन को फिर लिखा—

"सारे झगड़ों को शान्त करने ही के लिए मैंने तुम्हें सब अधिकार तुम्हारी इच्छा के अनुसार दिए हैं। परन्तु मेरे राज्य में तुम फिर क्यों कलह-सृष्टि कर रहे हो? तैमूरलंग के समय से अब तक कभी यूरोपियन यहाँ परस्पर नहीं लड़े। अभी उस दिन सन्धि हुई, अब तुम फिर युद्ध ठान देना चाहते हो। मराठे लुटेरे थे, पर उन्होंने भी सन्धि नहीं तोड़ी। तुमने सन्धि की है। इसका पालन तुम्हें करना होगा। खबरदार, मेरे राज्य में लड़ाई-झगड़ा न मचे। मैंने जो-जो प्रतिज्ञाएँ की हैं—उनका पालन करूँगा।"

पत्र लिखकर ही नवाब शान्त न हुआ। उसने प्रजा की रक्षा के लिए महाराजा नन्दकुमार की अधीनता में हुगली, अमरद्वीप और पलासी में सेनाएँ नियुक्त कर दीं।

मुर्शिदाबाद पहुँचकर नवाव ने सुना कि अंग्रेजों ने चन्दननगर पर आक्रमण करना निश्चय कर लिया है। उसने फिर एक फटकार-भरा पत्र लिखा—"बाइबिल की कसम और खीष्ट की दुहाई ले-लेकर भी सन्धि का पालन न करना शर्म की बात है।"

अबकी बार अंग्रेजों ने जो जवाब लिखा, उसका सार इस प्रकार था--

"आप फ्रांसीसियों के साथ युद्ध से सहमत नहीं हैं—यह मालूम हुआ। फ्रांसीसी यदि हमसे सन्धि कर लें तो हम न लड़ेंगे, पर आपको सूबेदार की हैसियत से उनका जामिन होना पड़ेगा।"

नवाब ने इस कूट-पत्र का सीधा जवाब दिया--"फ्रांसीसी यदि तुमसे लड़ेंगे, तो मैं उनको रोकूँगा। मेरा अभिप्राय प्रजा में शान्ति रखने का है। सन्धि के लिए मैंने फ्रांसीसियों को लिखा है।"

यथासमय फ्रान्सीसियों का प्रतिनिधि सन्धि के लिए कलकत्ते पहुँचा, परन्तु अंग्रेजों ने सन्धि-पत्र पर दस्तखत करती बार अनेक विवाद खड़े किये। वाट्सन साहब इनमें मुख्य थे। निदान, सन्धि नहीं हुई।

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