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दावों को समझकर मेरे साथ सन्धि स्थापित कर सके। यदि अंग्रेज व्यापारी ही बनकर पूर्व नियमों के अनुसार रह सकें—तो मैं अवश्य ही उनकी हानि के मामले पर भी विचार करके उन्हें सन्तुष्ट करूँगा।

"तुम ईसाई हो, तुम यह अवश्य जानते होगे कि शान्ति-स्थापना के लिये सारे विवादों का फैसला कर डालना—और विद्वेष को मन से दूर रखना कितना उत्तम है। पर यदि तुमने वाणिज्य-स्वार्थ का नाश करके लड़ाई लड़ने ही का निश्चय कर लिया है, तो फिर उसमें मेरा अपराध नहीं है। सर्वनाशी युद्ध के अनिवार्य कुपरिणाम को रोकने के लिए ही मैं यह पत्र लिखता हूँ।"

हुगली की लूट और नवाब को गर्मागर्म पत्र लिख चुकने पर विलायत से कुछ ऐसी खबरें आईं कि फ्रेंचों से भयंकर लड़ाई आरम्भ हो रही है। भारतवर्ष में फ्रेंचों का जोर अंग्रेजों से कम न था। अंग्रेज लोग अब अपनी करतूतों पर पछताने लगे। शीघ्र ही उन्हें यह समाचार मिला कि नवाब सेना लेकर चढ़ा आ रहा है। अव क्लाइव बहुत घबराया। वह दौड़कर जगतसेठ और अमीचन्द की शरण गया। परन्तु उन्होंने साफ कह दिया कि नवाब अब कभी सन्धि की बात न करेगा। हुगली लूटकर तुमने बुरा किया है। परन्तु जब नवाब का उक्त पत्र पहुंचा, तो मानो अंग्रेजों ने चाँद पाया। उनको कुछ तसल्ली हुई।

कलकत्ते में वणिकराज अमीचन्द के ही महल में नवाब का दरबार लगा। आँगन का बगीचा तरह-तरह के बाग-बहारी और प्रदीपों से सजाया गया। चारों ओर नंगी तलवार लेकर सेनापति तनकर खड़े हुए। भारी-भारी बहुमूल्य रत्नजटित वस्त्र पहनकर लोग दुजानूं होकर, सिर नवाकर बैठे। बीच में सिंहासन, उसके ऊपर विशाल मसनद, ऊपर सोने के डण्डों पर चन्दोवा-जिस पर मोती और रत्नों का काम हो रहा था, लगाया गया। उसी रत्नजटित चम्पे के फूल जैसी खिली मुख-कान्ति से दीप्तमान-बंगाल, बिहार और उड़ीसा का युवक नवाब सिराजुद्दौला आसीन हुआ।

वाट्सन और स्क्राफ्टन अंग्रेजों के प्रतिनिधि बनकर आये। नवाब के ऐश्वर्य को देखकर क्षण-भर वे स्तम्भित रहे। पीछे हिम्मत बाँध, धीरे-धीरे

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