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हरजाने का पैसा-पैसा भरपाई का हिसाब लिखा था, पर उसमें भी काल-कोठरी का जिक्र नहीं है।

किले पर आक्रमण करने से प्रथम किले में ९०० आदमी थे, जिनमें ६० यूरोपियन थे। इनमें से बहुतेरे ड्रेक के साथ भाग गये, ७० घायल पड़े थे। तिस पर भी १४६ आदमी कहाँ से बन्द किये गये?

हॉलवेल साहब इसका एक स्मृति-स्तम्भ भी बनवा गये थे, पर पीछे वह अंग्रेजों ने ही गिरा दिया। अंग्रेजी राज्य में इसी कल्पित काल-कोठरी की यातना प्रत्येक जेल में प्रत्येक कैदी को भुगतनी पड़ती थी।

हॉलवेल साहब पहले डॉक्टर थे, और अंग्रेजों की कम्पनी से इन्हें ६०० रुपये तनख्वाह मिलती थी। नजर-भेंट में भी खासी आमदनी होती थी। पर ये काले लोगों के प्रति बड़े ही निर्दयी थे। इसी से नवाब ने मुचलका लिखाया था। जब कलकत्ता फतह हुआ, तो हॉलवेल साहब का सर्वनाश हुआ। साथ ही वे बन्दी करके मुर्शिदाबाद लाये गये। पर पलासी-युद्ध में मीरजाफर से घूस में एक लाख रुपया इन्हें मिला। तब उन्होंने कलकत्ता के पास थोड़ी-सी जमींदारी खरीद ली। कुछ दिन कलकत्ते के गवर्नर भी रहे। पर शीघ्र ही विलायत के अधिकारियों से लड़ने-भिड़ने के कारण अलग कर दिये गये, और जिस मीरजाफर ने इतना रुपया दिया था, उसे झूठा कलंक लगाकर राज्य-च्युत किया। अन्त में इंगलैंड जाकर मर गये।

कलकत्ते का शासन-भार राजा मानिकचन्द को दे, नवाब ने कलकत्ते से चलकर हुगली में पड़ाव डाला। डच और फ्रांसीसी सौदागर गले में दुपट्टा डाले आधीनता स्वीकार करने के लिए सम्मानपूर्वक नजर-भेंट लाये। डचों ने साढ़े चार लाख और फ्रेंचों ने साढ़े चार लाख रुपया नवाब को भेंट किया। नवाब ने वाट्सन और क्लेट को बुलाकर यह समझा दिया कि-

"मैं तुम लोगों को देश से बाहर निकालना नहीं चाहता, तुम खुशी से कलकत्ते में रहकर व्यापार करो।"

नवाब राजधानी को लौट गये। अंग्रेज कलकत्ते में वापस आये और अमीचन्द की उदारता की बदौलत उन्होंने अन्न-जल पाया।

इस यात्रा से लौटकर ११ जुलाई को नवाब ने राजधानी में गाजे-बाजे से प्रवेश किया। तोपों की सलामी दगी। नाच-रंग होने लगे। नवाब रत्न-

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