यह पृष्ठ प्रमाणित है।

और कृष्णवल्लभ को खोजा गया। वे दोनों आकर जब नवाब के सामने नम्रतापूर्वक खड़े हुए, तो नवाब ने उनका आदर करके आसन दिया। यही कृष्णवल्लभ था जिसकी बदौलत इतने झगड़े हुए थे।

इसके बाद अंग्रेज कैदियों की तरह बाँधकर नवाब के सामने लाये गये। सामने आते ही हॉलवेल साहब से नवाब ने कहा-"तुम लोगों के उद्दण्ड-व्यवहार के कारण ही तुम्हारी यह दशा हुई है।" इसके बाद सेनापति मानिकचन्द को किले का भार सौंपकर दरबार बर्खास्त किया। थकी-माँदी सेना आराम का स्थान इधर-उधर खोजने लगी।

परन्तु हॉलवेल ने नवाब को बदनाम करने के लिए एक असत्य घटना, इस अवसर पर गढ़कर अपने मित्रों में प्रचारित की। उसने कहा-"नवाब ने १४६ अंग्रेज उस दिन रात को -१८ फुट आयतन की कोठरी में बन्द करवा दिये, जिसमें सिर्फ एक खिड़की थी और जिसमें लोहे के छड़ लगे हुए थे। प्रातःकाल जब दरवाजा खोला गया, सिर्फ २३ आदमी जिन्दा बचे।"

काल-कोठरी की यह बात इतनी प्रसिद्ध हो गई कि समस्त भारत और इंग्लैंड में बच्चा-बच्चा इस बात को जान गया। पर बाद में यह बात प्रमाणित हुई कि यह सिर्फ नवाब को बदनाम करने को हॉलवेल ने कहानी गड़ी थी, जो बड़ा मिथ्यावादी आदमी था।

अत्यन्त साधारण बुद्धिवाला व्यक्ति भी समझ सकता है कि १८ फुट की व्यासवाली कोठरी में १४६ आदमी, यदि वे बोरों की तरह भी लादे जाएँ, तो नहीं आ सकते। इसका जिक्र न तो किसी मुसलमान लेखक ने किया है, न कम्पनी के कागजों में ही कहीं इसका जिक्र है। उस समय मद्रासी अंग्रेजों और नवाब में जो पीछे हर्जाने की बात चली, उसमें भी काल-कोठरी का जिक्र नहीं है। क्लाइव ने जिस तेजी-फुर्ती के साथ नवाब से पत्र-व्यवहार किया था, उसमें भी काल-कोठरी के अत्याचार का जिक्र नहीं। यहाँ तक कि सिराजुद्दौला और अंग्रेजों की जो पीछे सन्धि-स्थापना हुई थी, उसमें भी इसका कुछ जिक्र नहीं है। क्लाइव ने नवाब को पद-च्युत करने पर कोर्ट आफ डाइरेक्टर्स को, नवाब के अत्याचारों से परिपूर्ण जो चिट्ठी लिखी थी, उसमें भी काल-कोठरी का जिक्र नहीं है। अंग्रेजों ने मीरजाफर को अपने

२०