को कुछ मालूम न था। वह मूर्तिमान संगीत, वह उमड़ता हुआ आनन्द-समुद्र सदा के लिए मानो किसी जादूगर ने निर्जीव कर दिया।
कलकत्ता के एक उजाड़-से भाग में, एक बहुत विशाल मकान में, वाजिदअली शाह को नजरबंद कर दिया गया। ठाठ लगभग वही था। सैकड़ों दासियां, बांदियाँ और वेश्याएँ भरी हुई थीं। पर वह लखनऊ का रंग कहाँ!
खाना खाने का वक्त हुआ और जब दस्तरखान पर खाना चुना गया, तो बादशाह ने चख-चखकर फेंक दिया। अंग्रेज अफसर ने पूछा-"खाने में क्या नुक्स है?"
नवाब के खास खिदमतगार ने जवाब दिया-"नमक खराब है।"
"नवाब कैसा नमक खाते हैं?"
"एक मन का डला रखकर उस पर पानी की धार छोड़ी जाती है। जब धुलते-धुलते छोटा-सा टुकड़ा रह जाता है, तब नवाब के खाने में वह नमक इस्तेमाल होता है।"
अंग्रेज अधिकारी मुस्कराता चला गया।
वाजिदअली के बाद अवध के ताल्लुकेदारों की रियासतें छीन ली गई और अवध का तख्त सदा के लिए धूल में मिल गया।
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