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उन्होंने कर्नल बिलकान्स की आधीनता में एक वेधशाला भी बनवाई, जो १८५७ के विद्रोह में नष्ट हो गई।

उनके जमाने में गवर्नर लार्ड बैटिंग थे। उन्होंने अवध के दौरे में नवाब बादशाह को खूब डरा-धमकाकर राज्य में बहुत-से उलट-फेर किये। यह अफवाह फैल गई थी कि अंग्रेज अब नवाबी का अन्त किया चाहते हैं। नवाब ने घबराकर इंगलिस्तान की पार्लियामेण्ट में अपील करने के इरादे से कर्नल यूनाक नामक फ्रान्सीसी को इंगलैंड भेजा। पर बैटिंग ने नवाब को डरा- धमकाकर बीच ही में उसकी बर्खास्तगी का परवाना भिजवा दिया। उन्होंने दस वर्ष राज्य किया।

उनके बाद बादशाह की वेश्या का पुत्र मुन्नाजान गद्दी पर बैठा। पर नसीरुद्दीन की माता ने उसका भारी विरोध कर, उसे गद्दी से उतरवाया। कुछ खून-खराबी भी हुई। अन्त में उसे चुनार में कैद कर लिया गया। उसके बाद नवाब सआदतअलीखाँ के द्वितीय पुत्र मिरजा मुहम्मदअली गद्दी पर बैठे। वह विद्या-व्यसनी और शान्त पुरुष थे। हुसेनाबाद का इमामबाड़ा उन्होंने बनवाया था। उन्होंने पाँच वर्ष राज्य किया।

इनके बाद मिरजा मुहम्मद अमजदअलीखाँ गद्दी पर बैठे। वह शाह मुहम्मदअली के बेटे थे। वह भी ५ वर्ष राज्य कर, मृत्यु को प्राप्त हुए।

उनके बाद प्रसिद्ध और अन्तिम बादशाह बाजिदअली शाह २५ वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे। वह बड़े शौकीन, नाजुक मिजाज और विनोद-प्रिय थे। उन्होंने नये फैशन के अँगरखे, कुरते, टोपी ईजाद किये। ठुमरी भी उन्हीं की ईजाद है। उनके जीवन में २४ घण्टे नाच-गाने का रंग रहता। स्वयं भी नाच-गाने में उस्ताद थे। सिकन्दरबाग, कैसरबाग आदि इमारतें उन्हीं की बनवाई हुई हैं।

लार्ड डलहौजी ने भारत के गवर्नर जनरल बनकर आते ही देसी रिया-सतों को समेटकर अंग्रेजों के कदमों में ला पटका। सबकी स्वतन्त्र सत्ता नष्ट करके उन्हें अंग्रेजों के आधीन बना दिया। अवध भी उसकी दृष्टि सेनहीं बचा। लार्ड डलहौजी के पिता, जब वे कम्पनी की भारतीय सेना के कमाण्डर इन चीफ थे, अपनी पत्नी सहित लखनऊ आए और नवाब से भेंट की। उन्होंने अपनी पत्नी का परिचय नवाब से कराया और देर तक पत्नी

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