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भूखों मरने लगीं। अन्त में बेगमों ने पिटारों पर पिटारे और खजानों पर खजाने देना शुरू कर दिया। यह रकम एक करोड़ रुपये के अनुमानतः होगी।

इस घटना से अवध-भर में तहलका मच गया, और आसफउद्दौला का दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया।

इसके बाद हेस्टिंग्स ने कर्नल हैनरी को नवाब के यहाँ भेजा और उसे बहराइच तथा गोरखपुर जिलों का कलक्टर बनवा दिया। उसने उन जिलों पर भयानक अत्याचार किया, और तीन वर्ष के अन्दर ही पतालीस लाख रुपया कमा लिया। नवाब ने तंग होकर उसे बर्खास्त कर दिया, पर हेस्टिंग्स ने फिर उसे नवाब के सिर मढ़ना चाहा।

नवाब ने लिखा-"मैं हजरत मुहम्मद की कसम खाकर कहता हूँ कि यदि आपने मेरे यहाँ किसी काम पर कर्नल हैनरी को भेजा-तो मैं सल्तनत छोड़कर निकल जाऊँगा।"


सत्रह

जब वारेन हेस्टिग्स की स्वच्छन्दता नष्ट हुई और कौन्सिल के साथ सहमत होकर शासन करने की कम्पनी ने आज्ञा दी, तब महाराज नन्दकुमार ने सर फिलिप फ्रांसिस द्वारा एक आवेदन-पत्र कौंसिल में भेजा। उसमें उन्होंने लिखा था-

"हेस्टिग्स साहब जैसे शत्रु की शिकायत करके आत्मरक्षा के मैं ईश्वर की कृपा पर ही भरोसा करता हूँ। मैं आत्ममर्यादा को प्राण से भी बढ़कर मानता हूँ। और मैं यदि अब भी असली भेद न खोलूँ और मौन रहूँ तो मुझे और भी अधिक विपत्तियाँ झेलनी पड़ेंगी, अतः मैं लाचार होकर यह रहस्य-भेद प्रकट करता हूँ।

इस आवेदन-पत्र में महाराज ने दिखाया कि हेस्टिग्स साहब ने ३५४१०५ रुपये का गबन किया है और वे महाराज के सर्वनाश का षड्यन्त्र रच रहे हैं। महाराज के शत्रु जगतचन्द्र, मोहनप्रसाद, कमालुद्दीन आदि इस पाप-

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