अन्त में वाट्सन साहब हाथ में रूमाल बाँधकर दरबार में हाजिर हुए। नवाब ने उनको अंग्रेजों के उद्दण्ड व्यवहार के लिये बहुत लानत-मलामत की। वाट्सन बेचारे भयभीत खड़े रहे। लोगों को भय था कि कहीं नवाब इन्हें कुत्तों से न नुचवा दे। परन्तु, उसने क्रोधित होने पर भी कर्तव्य का ख्याल किया। उसने साहब को अपने डेरे पर जाकर मुचलका लिखकर लाने की आज्ञा दी। वाट्सन साहब ने जल्दी-जल्दी मुचलका लिख दिया। उसका अभिप्राय यह था-
"कलकत्ते का किला गिरा देंगे। कुछ अपराधी, जो भागकर कलकत्ते जा छिपे हैं, उन्हें बांधकर ला देंगे। बिना महसूल व्यापार करने की सनद बादशाह से कम्पनी ने पाई है, और उसके बहाने बहुतेरे अंग्रेजों ने बिना महसूल व्यापार करके जो हानि पहुंचाई है, उसकी भरपाई कर देंगे। कलकत्ते में हॉलवेल के अत्याचारों से-देशी प्रजा जो कठिन क्लेश भोग रही है, उसे उनसे मुक्त करेंगे।"
मुचलका लिखवाकर वाट्सन और हेस्टिग्स को उसकी शर्तों के पालन होने तक मुर्शिदाबाद में नजरबन्द करके नवाब शान्त हुए। परन्तु पन्द्रह दिन बीतने पर भी मुचलके की शर्तों का कलकत्तेवालों ने पालन नहीं किया। वाट्सन की स्त्री और नवाब की माता में मेले-जोल था। वह अन्तःपुर में आकर बेगम-मण्डली में रोने-पीटने लगी। उसके करुण विलापों से पिघल-कर नवाब की माता ने पुत्र से दोनों को छोड़ देने का अनुरोध किया। माता की आज्ञा शिरोधार्य कर, नवाब को बिलकुल अनिच्छा से दोनों बन्दियों को छोड़ना पड़ा।
शीघ्र ही नवाब को मालूम हुआ कि अंग्रेज लोग मुचलके की शर्तों का पालन नहीं करेंगे। अतएव उसने व्यर्थ आलस्य में समय न खोकर कलकत्ते को एक दूत भेजा और स्वयं सेना ले चलने की तैयारी करने लगा।
अंग्रेजों ने यह समाचार पाकर झटपट ढाका, बालेश्वर, जगदिया आदि स्थानों की कोठियों को सूचना दे दी कि, बहीखाता आदि समेट-समाटकर सुरक्षित स्थानों में चले जाओ। कलकत्ते में गवर्नर ड्रेक नगर-रक्षा के लिये सैन्य-संग्रह और बन्दोबस्त करने लगे। वास्तव में वे सिराजुद्दौला को अस्थायी नवाब समझते थे। उनका ख्याल था, अनेक घरेलू शत्रुओं से घिरा
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