पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१२९

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टीपू का सिंहासन सोने का बना हुआ था। सिंहासन की छतरी की कलगी में मोर बना था। मोर की गर्दन जमरुदों, शरीर हीरों तथा बीच-बीच में लालों की तीन धारियों से भरा हुआ था। चोंच एक बड़े जमर्रुद की थी, जिसके सिरे स्वर्णमंडित थे। इसमें एक बड़ा लाल और दो मोती भी लटक रहे थे। सिर की कलगी जमरुद और मोती की थी। पंख और परलाल हीरों और जमरुद के थे, जिनमें दोनों ओर सफेद छोटे मोती लटकते थे।

टीपू का राज्यचिन्ह 'सिंह' था। सिंहासन का चरणासन स्वर्ण-निर्मित सिंह-मुख था। सिंह की आँखें और दाँत बिल्लौर के थे, सिर के ऊपर की धारियाँ भी स्वर्ण की थीं।

उसकी पताकाओं पर सूर्य का चिह्न होता था। दो पताकाएँ लाल रेशम की होती थीं, जिनके बीच में स्वर्णरश्मियों के सूर्य बने हुए थे। बीच की पताका हरे रंग की होती थी, जिसपर सुनहरी सूर्य कढ़ा था। पताकाओं के सिरे सोने के थे जिनमें लाल हीरे और जमरुंद जड़े हुए थे।

ये दोनों अमूल्य धरोहर आजकल इंगलैंड के विंडसर कैसेल में रखे हुए थे।

टीपू की समाधि पर यह शेर खुदा है-

चूँ आँ मर्द मैंदा निहाँ शुद्ज दुनिया।
थके गुफ्त तारीख शमशीर गुल शुद।।

अर्थात्-जिस समय वह शूर दुनिया से गायब हुआ, उसी समय इतिहास के लिये तलवार गुम हो गई।


सोलह

भारत के हृदय में अवध स्थित है। भारत में अंग्रेजों के आगमन के समय भी इस भूमि में अनेक उपयोगी आकर्षण थे। इस भूमि को देखकर अंग्रेजों ने इसे विपुल जलभूमि, ऊँचे-ऊँचे बाँस के जंगलों से लहराते हुए शोभायमान दृश्य, आम्रवृक्षों की घनी शीतल छाया और हरी-भरी फसलों से लहलहाती हुई शस्य श्यामला अत्यन्त वैभवशाली और मनोरम बताया था।

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