समस्त अंग्रेजी इलाका फतह कर लिया था। पर अचानक उसकी मृत्यु आरकाट के किले में हो गई। हैदरअली की पीठ में अदीठ (कारबंकल) फोड़ा हो गया था। उसी से उसकी मृत्यु हुई। मृत्यु के समय वह साठ वर्ष का था।
मृत्यु के समय उस तमाम इलाके को छोड़कर जो उसने हाल के युद्ध में अपने शत्रुओं से विजय किया था-शेष का क्षेत्रफल ८० हजार वर्ग मील था, जिसकी सालाना बचत, तमाम खर्चा निकालकर, ३ करोड़ रुपये से अधिक थी। उसकी सेना ३ लाख २४ हजार थी। खजाने में नकदी और जवाहरात मिलाकर ८० करोड़ से ऊपर था। उसकी पशुशाला में ७०० हाथी, ६००० ऊँट, ११००० घोड़े, ४००००० गाय और बैल, १००००० भैंसे, ६०००० भेड़ें थीं। शस्त्रागार में ६ लाख बन्दूकें, २ लाख तलवारें और २२ हजार तोपें थीं।
यह पहला ही हिदुस्तानी राजा था, जिसने अपने समुद्र-तट की रक्षा के लिए एक जहाजी बेड़ा-जो तोपों से सज्जित था, रखा हुआ था। यह जल सेना बहुत जबर्दस्त थी, और उसके जल-सेनापति अली रजा ने मलद्वीप के १२ हजार छोटे-छोटे टापुओं को हैदर के राज्य में मिला लिया था।
वह पढ़ा-लिखा न था। बड़ी कठिनता से वह अपने नाम का पहला अक्षर 'है' लिखना सीख पाया था। पर, इसे भी वह उल्टा-सीधा लिख पाता था। फिर भी उसने योरोप के बड़े-बड़े राज्यनीतिज्ञों के दाँत खट्टे कर दिये थे। उसकी स्मरण शक्ति ऐसी अलौकिक थी, कि वह एक-साथ कई काम किया करता था। एक साथ वह तीस-चालीस मुंशियों से काम लेता था। उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र टीपू ने युद्ध उसी भाँति जारी रखा। अंग्रेजों ने लल्लो-चप्पो करके सन्धि की। वह वीर था—पर अनुभव-शून्य था। उसने अंग्रेजों-से मित्रता की सन्धि स्थापित की, और जीता हुआ प्रान्त उन्हें लौटा दिया। कम्पनी ने उसे मैसूर का अधिकारी स्वीकार कर लिया था।
कुछ दिन तो चला। पीछे जब लॉर्ड कार्नवालिस गवर्नर होकर आयातो उसने देखा कि टीपू ने निजाम और मराठों से बिगाड़ कर लिया है। कॉर्नवालिस ने झट निजाम के साथ टीपू के बिरुद्ध एक समझौता किया।
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