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बतौर खिराज के ६ लाख सालाना का देनदार बना। इसके सिवा एक नया युद्ध का जहाज, जिस पर उम्दा ५० तोपें थीं, हैदरअली को अंग्रेजों ने भेंट किया।

इस सन्धि का यह असर हुआ कि इंगलैण्ड में इसकी खबर पहुँचते ही ईस्ट-इण्डिया कम्पनी के हिस्सों की दर ४० फीसदी गिर गई।

कुछ दिन बाद मरहठों ने मैसूर पर आक्रमण किया। हैदर ने अंग्रेजों से मदद माँगी। पर उन्होंने इन्कार कर दिया। हैदर अंग्रेजों की चाल समझ गया। उसने टीपू को मरहठों पर सेना लेकर भेजा और ६ वर्ष के लिए दोनों में सन्धि हो गई। जब हैदर को यह निश्चय हो गया कि अंग्रेज सन्धि को तोड़ रहे हैं तो उसने अंग्रेजों पर चढ़ाई करने की तैयारी कर दी और निजाम से मदद माँगी। पर निजाम इस बार भी ऐन मौके पर दगा कर गया।

इसी बीच में नाना फड़नवीस ने हैदर से सन्धि कर ली। अंग्रेजों ने फिर सन्धि की बहुत चेष्टा की पर हैदर ने स्वीकार नहीं किया। कर्नाटक का नवाब मुहम्मदअली अंग्रेजों का मित्र था। हैदर ने पहले उसी की ओर रुख किया और सेना के कई भाग कर तमाम प्रान्त में फैला दिये। अंग्रेजों और नवाब की सेनाएँ हार-पर-हार खाने लगीं। अन्त में तमाम प्रान्त को हैदर ने अपने कब्जे में कर लिया। नवाब भागकर मद्रास चला गया। हैदर की सेनाएँ भी मद्रास जा धमकीं। अंग्रेजों की दो सेनाएँ उसके मुकाबले को उठीं। घनघोर युद्ध हुआ और हैदर ने अंग्रेजी सैन्य को बिलकुल नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। अरकाट के किले और नगर पर भी अधिकार हो गया। वहाँ उसने एक हाकिम नियत किया और शासन-प्रबन्ध ठीक किया।

उस समय वारेन हेस्टिग्स गवर्नर जनरल थे। यह समाचार सुन वह घबरा गये। बंगाल की हालत भयानक हो गई थी। भयानक दुर्भिक्ष था। पर फिर भी पाँच लाख रुपया नकद और एक भारी सेना उसने मद्रास के लिये भेजी। मद्रास पहुँचकर इस सेना के सेनापति ने सात लाख रुपये मुहम्मदअली से और वसूल किये और सैन्य-संग्रह कर हैदरअली के मुकाबले को बढ़ा। कई बार मुठभेड़ हुई और अंग्रेजों को भारी हानि उठाकर पीछे हटना पड़ा। अन्त में सेनापति सर कूट बंगाल लौटं गये। हैदर ने लगभग

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