पृष्ठ:आग और धुआं.djvu/१२०

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बड़ा भक्त था। शेखअली के चार बेटे थे। उन्होंने बाप से नौकरी की इजाजत माँगी। पर उसने समझाया- "हम साधुओं को दुनिया के धंधों में फंसना ठीक नहीं।" निदान, वे पिता की मृत्यु तक उसके पास रहे। पिता की मृत्यु पर बड़ा तो पिता के स्थान पर अधिकारी हुआ और सबसे छोटा अरकाट के नवाब के यहाँ फौज में जमादार हो गया और तंजोर के फकीर पीरजादा कुरहानुद्दीन की लड़की से शादी कर ली। इससे उसे दो पुत्र हुए-जिनमें छोटे का नाम हैदरअली था। उस समय उसका पिता सिरा के नवाव के यहाँ बाराँपुर कलाँ का किलेदार था। जब हैदरअली तीन वर्ष का था, तव उसका पिता किसी युद्ध में मारा गया। उनका सब सामान जब्त कर लिया गया और हैदरअली को भाई सहित नक्कारे में बन्द कराकर नक्कारे पर चोटें लगवानी शुरू करा दी गई। इस अवसर पर उसके चचा ने धन भेजकर उसका उद्धार किया और अपने पास रखा। वहाँ उसने युद्ध विद्या सीखी और समय आने पर दोनों भाई मैसूर की सेना में भर्ती हो गये।

मैसूर रियासत मरहठों को चौथ देती थी। इस समय निजाम और मैसूर राज्य का मिलकर अंग्रेजों से युद्ध हुआ। इस युद्ध में हैदरअली एक साधारण सवार की भाँति लड़ा।

इस युद्ध में हैदर ने जो कौशल दिखाया, उस पर मैसूर के दीवान की दृष्टि पड़ी और उसने हैदर को डिण्डीनल का फौजदार नियत कर दिया। वहाँ उसने अपनी सेना को फ्रांसीसी रीति से युद्ध करने की शिक्षा दी और तोपखाने में भी फ्रांसीसी कारीगर नियुक्त किये।

धीरे-धीरे उसका बल बढ़ता गया और वह प्रधान सेनापति हो गया। शीघ्र ही वह मैसूर का प्रधानमन्त्री हो गया। उस समय प्रधानमन्त्री ही राज-काज के कर्ता-धर्ता थे। महाराज तो साल में एकाध बार प्रजा को दर्शन देते थे। हैदरअली ने शीघ्र ही मैसूर की सम्पूर्ण सत्ता अधिकार में कर ली और प्रधानमन्त्री की पदवी उसकी खानदानी पदवी हो गई। दिल्ली के सम्राट ने भी उसे सीरा-प्रान्त का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

अब हैदरअली ने राज्य की व्यवस्था की ओर ध्यान दिया और शीघ्र ही प्रबन्ध उत्तमता से होने लगा। इसके बाद उसने आस-पास के प्रान्त में विजय प्राप्त कर, रियासत को बढ़ाना प्रारम्भ किया।

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