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लगी। धीरे-धीरे उसके मन में वीतराग उत्पन्न हुआ और वह मृत्यु की कामना करने लगी, जिससे वह शीघ्र अपने पति के पास पहुँच जाय।

उस पर अभियोग चला, वह दोषी प्रमाणित हुई। अदालत ने उसे भी मृत्युदण्ड दिया। दस महीने तक इस एकाकी बन्दीगृह की यातना भोगकर एक दिन प्रातःकाल ही उसे वध-स्थल पर ले जाया गया और अपने पति की मृत्यु के ग्यारह महीने बाद उसका सिर भी उसी गिलेटन पर रखकर काटा गया जिस पर उसके प्यारे पति और फ्रांस के सम्राट का काटा गया था। आत्वानेत ने जीवन पर्यन्त प्रजा का रोष और तिरस्कार सहा, परन्तु उसने अपनी गरिमा को नहीं गिराया। सिर काटने के समय भी वह भय, शोक और चिन्ता से मुक्त थी।

आत्वानेत को मारकर अधिकारियों ने गिरोण्डिस्ट दल के सदस्यों को ढूंढ-ढूंढकर मारना आरम्भ किया। कितने ही पुरुष और स्त्रियों के सिर गिलेटन पर रखकर काट डाले गए। सम्राट के पुत्र को ऐसी एकान्त कोठरी में रखा गया, जहाँ दिन का प्रकाश भी नहीं पहुँचता था। सर्दी के दिनों में उसे तापने के लिए आग भी नहीं जलाने दी जाती थी। उसे भोजन एक खिड़की में से दिया जाता था। कोई उससे बात नहीं कर सकता था। अन्त में एकान्तवास की यातना सहकर केवल १५ वर्ष की आयु में अपनी माता की मृत्यु के दो वर्ष बाद वह भी मृत्यु की गोद में सो गया।


पन्द्रह

हैदरअली के दादा वलीमुहम्मद एक मामूली फकीर थे, जो गुलबर्गा में दक्षिण के प्रसिद्ध साधु हजरत बन्दानेवाज गेसूदराज की दरगाह में रहा करते थे। इनके खर्च के लिये दरगाह से छोटी-सी रकम बँधी हुई थी। इनका एक पुत्र था, जिसका नाम मोहम्मदअली था। उसे शेखअली भी कहते थे। उसे भी लोग पहुंचा हुआ फकीर मानते थे। वह कुछ दिन बीजापुर में रहा, पीछे कर्नाटक के कोलार नामक स्थान में आकर ठहरा, कोलार का हाकिम शाह मुहम्मद दक्षिणी शेखअली का

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