भर मनुष्य क्रूर और अमानुषिक कार्यों द्वारा हम पर आधिपत्य जमाए हुए हैं। वे नित्य हमारे विरुद्ध षड्यन्त्र रचते हैं। हम अपना नाश कर रहे हैं। यदि यही दशा रही तो कुछ समय में हमारे अस्तित्व की स्मृति के अतिरिक्त और कुछ शेष न रह जायेगा।
"फ्रांस निवासियो! तुम अपने शत्रुओं को जानते हो, उठो और उनके विरुद्ध प्रस्थान कर दो, उन्हें शासनाधिकार से हटाकर फ्रांस में सुख और शान्ति स्थापित करो।
"ओ मेरे देश, तेरे दुखों से मेरा हृदय फटा जाता है। मैं तुझे अपने जीवन के अतिरिक्त और क्या दे सकती हूँ? मैं परमात्मा को धन्यवाद देती हूँ कि मुझे अपना जीवन अन्त करने की पूरी स्वतन्त्रता है। मेरी मृत्यु से किसी को भी हानि न होगी। मैं चाहती हूँ कि मेरा अन्तिम श्वास भी मेरे नागरिक भाइयों के लिए हितकर हो, मेरे कटे सिर को पेरिस नगर में मनुष्यों द्वारा इधर-उधर घुमाते देखकर वे कार्य-सिद्धि के लिए एक मत हो सकें, मेरे रक्त से अत्याचारियों का अन्त लिखा जाए और उनके क्रोध का अन्तिम निशाना बनूं।
"मेरे संरक्षक और मित्रों को किसी प्रकार का कष्ट न दिया जाय, क्योंकि मेरे विचारों से कोई भी अवगत न था। देशवासियो! मैं अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकी हूँ, पर मैंने आप लोगों को मार्ग दिखा दिया है। आप अपने शत्रुओं को जानते हैं। उठो और उनके विरुद्ध प्रस्थान करके उनका अन्त कर दो।"
दूसरे दिन क्रांतिकारी न्यायालय के अध्यक्ष उस वीरबाला कोर्दै को देखने के लिये आये। कारागार की अँधेरी कोठरी में वह उससे मिले। कोर्दे की युवा अवस्था और सुन्दरता को देखकर उनके हृदय में बड़ी दया उत्पन्न हुई। उसने कोर्ट को बचाना चाहा, परन्तु कोर्ट ने झूठ बोलकर अपना प्राण बचाने से इन्कार कर दिया। कारागार में कोर्ट को लिखने की सामग्री मिल गई थी। अपने मित्रों और पिता को उसने जो पत्र लिखे हैं, उनमें उसने अपने कार्य, दशा और विचारों का वर्णन किया है। पिता को उसने बड़े संक्षिप्त शब्दों में लिखा-"आपकी अनुमति बिना अपने जीवन का अन्त करने के लिये आप मुझे क्षमा करें। मेरे प्यारे पिता, विदा। आप मुझे भूल
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