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में कोर्दे को पल भर का भी समय नहीं लगा। मारोत के मुँह से निकाला-"सहायता" और फिर उसका प्राण-पखेरू उड़ गया।

'सहायता' का शब्द सुनकर मारोत के कुछ भृत्य कमरे में दौड़ आये। उन्होंने कोर्दे को पकड़ लिया। एक मनुष्य ने एक कुर्सी उठा कर कोर्दे के शरीर पर दे मारी और वह बेहोश होकर गिर पड़ी। उसकी अचेतन अवस्था में मारोत की प्रेयसी ने, जो उस समय वहाँ खड़ी थी, कोर्ट को अपने पैरों से रौंद डाला। मारोत का मृत्यु समाचार बिजली की तरह सारे नगर में फैल गया। थोड़ी देर में पास-पड़ोसी, सरकारी कर्मचारी, नगर-रक्षक आदि सभी घटना-स्थल पर आ पहुँचे, मारोत का मकान बाहर और भीतर नर-समूह से भर गया।

बेहोशी दूर होने पर कोर्दै बिना किसी की सहायता के फर्श पर से उठ बैठी। उसने देखा, सैकड़ों आदमी उसे देखकर दाँत पीस रहे हैं। लाल-लाल आँखें दिखाकर अपने क्रोध में वे उसे भस्म कर देना चाहते हैं और घूसों द्वारा मारने के लिए प्रस्तुत हैं। वास्तव में यदि उस समय पुलिस कर्मचारी वहाँ न होते तो कोर्दै की अस्थियाँ तक मिलना कठिन हो जाता। कोर्ट इस दृश्य को देखकर तनिक भी विचलित न हुई। केवल मारोत की प्रेयसी को देखकर उसे कुछ पीड़ा हुई, परन्तु वह भी क्षणिक थी। पुलिस ने कोर्दे को ले जाकर कारागार में बन्द कर दिया।

पुलिस ने उससे प्रश्न किये-

"तुम इस छुरे को पहचानती हो?"

"हाँ।"

"किस कारण तुमने यह भीषण अपराध किया है?"

"मैंने देखा कि गृह-युद्ध से फ्रांस नष्ट हुआ चाहता है। मुझे यह विश्वास हो गया कि इन सब आपत्तियों का मुख्य कारण मारोत ही है।

मैंने अपने देश को बचाने के लिये अपना जीवन स्वेच्छा से बलिदान किया "जिन मनुष्यों ने तुम्हें इस कार्य में सहायता दी है, उनके नाम बताओ।"

"कोई भी मेरे विचारों से अवगत न था, मैंने अपनी चाची और पिता

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