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रखो-और सावधान रहो। अपने-अपने बादशाहों के घरेलू झगड़ों के बहाने इन लोगों ने मुगल बादशाह का मुल्क और उनकी प्रजा का धन छीनकर आपस में बाँट लिया है। इन तीनों कौमों को एक-साथ जेर करने का खयाल न करना; अंग्रेजों को ही पहले जेर करना। जब तुम ऐसा कर लोगे, तो बाकी कौमें तुम्हें ज्यादा तकलीफ न देंगी। उन्हें किले बनाने या फौज रखने की इजाजत न देना। यदि तुमने यह गलती की, तो मुल्क तुम्हारे हाथ से निकल जायगा।

सिराजुद्दौला पर इस नसीहत का भरपूर प्रभाव पड़ा था, और वह अंग्रेज-शक्ति की ओर से चौकन्ना हो गया। उसके तख्तनशीन होने पर नियमानुसार अंग्रेजों ने उसे भेंट नहीं दी थी। इसका अर्थ यह था कि वे उसे नवाब स्वीकार नहीं करते थे। वे प्रायः सिराजुद्दौला से सीधा सम्बन्ध भी नहीं रखते थे; आवश्यकता पड़ने पर अपना काम ऊपर-ही-ऊपर निकाल लेते थे।

धीरे-धीरे नवाब और अंग्रेजों का मन-मुटाव बढ़ता गया। अंग्रेजों ने जो कासिम बाजार में किलेबन्दी कर ली थी, नवाब उसका अत्यन्त विरोधी था। उसने वहाँ के मुखिया को बुलाकर समझाया-"यदि अंग्रेज शान्त व्यापारियों की भाँति देश में रहना चाहते हों तो खुशी से रहें। किन्तु सूबे के हाकिम की हैसियत से मेरा यह हुक्म है कि वे उन सब किलों को फौरन तुड़वाकर बराबर कर दें, जो उन्होंने हाल ही में बिना मेरी आज्ञा के बना लिये हैं।"

परन्तु इसका कुछ भी फल न हुआ। अन्त में नवाब ने कासिम बाजार में सेना भेजने की आज्ञा दे दी। अचानक कासिम बाजार में नवाबी सिपाही दीख पड़ने लगे। होते-होते और भी सैकड़ों सवार और बरकन्दाज आ-आकर शामिल होने लगे। सन्ध्या के प्रथम ही दो लड़ाके हाथी झूमते-झामते कासिम बाजार में आ पहुँचे। यह देखकर, अंग्रेजों के प्राण काँपने लगे। कोठी वाले अंग्रेज एक-एक करके भागने लगे। हेस्टिग्स भी भागकर अपने दीवान कान्ता बाबू के घर में छिप गया। सबने समझ लिया, रात्रि के अन्धकार के बढ़ने की देर है, बस नवाब की सेना बलपूर्वक किले में घुसकर अंग्रेजों के माल-असबाब का सत्यानाश कर, लूट-पाट मचा देगी। किले में जो नौकर

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