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स्त्रियों के साथ रहना पड़ा, परन्तु कुछ कर्मचारियों की कृपा से उसे एक अच्छी-सी कोठरी रहने को मिल गई। यहाँ पर उसने रोब्सपीयर के नाम एक पत्र लिखा-"अपराधी को प्रार्थना करने का कोई अधिकार नहीं है। गिड़गिडाना मेरी प्रकृति के विरुद्ध है। मैं दुख अच्छी तरह सह सकती हूँ। मैं भाग्य का रोना नहीं रोती। मैं तुम्हारे मन में दया उत्पन्न करने के लिए यह पत्र नहीं लिख रही हूँ। मैं तुम्हें तुम्हारा कर्तव्य सुझाना चाहती हूँ। याद रखो, भाग्य हमेशा साथ नहीं देता है, यही बात सर्व-साधारण में प्रिय होने के विषय में भी है। इतिहास इस बात का साक्षी है, जो कभी जनता के प्रिय थे, वही जनता के पैरों से ठुकराए गए।"

परन्तु उसने यह पत्र रोब्सपीयर के पास नहीं भेजा। जिसके एक बार वह स्वयं प्राण बचा चुकी थी, उसके सामने दीन बनने में उसको बड़ी ग्लानि प्रतीत हुई। उसने वह पत्न टुकड़े-टुकड़े कर डाला तब से वह किसी न किसी प्रकार समय बिताती रही। एक बार विष-पान करके जीवन अन्त करने का विचार भी उसके मन में उदय हुआ। एक कर्मचारी की सहायता से उसको कुछ विष मिल गया। मरने से पूर्व उसने पति, मित्रों के लिए कई पत्र लिखे, परन्तु पुत्री की स्मृति ने मरने न दिया। उसने विष का प्याला दूर फेंक दिया। वह कठिन से कठिन दुख सहने के लिए तैयार हो गई।

शीघ्र ही उस स्थान से वह एक तंग, गंदी और अंधकारपूर्ण कोठरी में बन्द कर दी गई। केवल विचार के समय न्यायालय में उपस्थित होने के लिए बाहर निकाली जाती थी। बड़ी निर्भीकता से उसने विचारपति के प्रश्नों का उत्तर दिया।

मृत्यु-दण्ड सुनकर उसने बड़े कटु शब्दों में विचारपति से कहा-"उन महात्मा पुरुषों का साथ देने में, जिनके रक्त से आपके हाथ रंगे हुए हैं, आपने मेरी जो सहायता की है, मैं उसके लिए आपको धन्यवाद देती हूँ।"

जब वह अन्य अपराधियों के साथ फाँसी के स्थान को जा रही थी, नगर की बहुत-सी स्त्रियाँ चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगीं-"बध स्थान के लिए, बध-स्थान के लिए।

मादाम रोलॉ से चुप न रहा गया। उसने उन स्त्रियों से कहा-"मैं तो बध-स्थान को जा रही हूँ और कुछ क्षणों में ही वहाँ पहुँच जाऊँगी, पर

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