यह पृष्ठ प्रमाणित है।
देवदासी
'.............'
१---३---२५
प्रिय रमेश!
परदेस में किसी अपने से घर लौट आने का अनुरोध बड़ी
सांत्वना देता है, परन्तु अब तुम्हारा मुझे बुलाना एक अभिनय-सा है। हाँ, मैं कटूक्ति करता हूँ, जानते हो क्यो? मैं
झगड़ना चाहता हूँ, क्योकि संसार में अब मेरा कोई नहीं है,
मैं उपेक्षित हूँ। सहसा अपने का-सा स्वर सुनकर मन में क्षोभ
होता है। अब मेरा घर लौट कर आना अनिश्चित है।
मैंने '.........' के हिन्दी-प्रचार-कार्यालय में नौकरी कर ली है।
तुम तो जानते ही हो कि मेरे लिये प्रयाग और '••••••••••,
--- ८७ ---