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कला

उसके पिता ने बड़े दुलार से उसका नाम रक्खा था---'कला'। नवीन इंदुकला-सी वह आलोकमयी और आँखों की प्यास बुझाने-वाली थी। विद्यालय में सबकी दृष्टि उस सरल बालिका की ओर घूम जाती थी; परंतु रूपनाथ और रसदेव उसके विशेष भक्त थे। कला भी कभी-कभी उन्हीं दोनों से बोलती थी, अन्यथा वह एक सुंदर नीरवता ही बनी रहती है।

तीनों एक दूसरे से प्रेम करते थे, फिर भी उनमें डाह थी। वे एक दूसरे को अधिकाधिक अपनी ओर आकर्षित देखना चाहते थे। छात्रावास में और बालकों से उनका सौहार्द्र नहीं। दूसरे बालक और बालिकायें आपस में इन तीनों की चर्चा करतीं।

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