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आकाश-दीप
 

"चोरी को पागलपन में छिपाया चाहती है! अभी तो तुझे बीसो चाहनेवाले मिलेंगे! चोरी क्यों करती है?"---प्रकाश ने कहा।

एक बार पगली का पागलपन, लाल वस्त्र पहनकर, उसकी आँखों में नाच उठा। उसने आम तोड़-तोड़ कर प्रकाश के क्षय-जर्जर हृदय पर खींचकर मारते हुए गिना---एक-दो-तीन! प्रकाश तकिये पर चित लेटकर हिचकियाँ लेने लगा, और पगली हँसते हुए गिनने लगी---एक-दो-तीन! उसकी प्रतिध्वनि अमराई में गूँज उठी।


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