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आकाश-दीप
 


और भिखारिन की ओर फेंककर बोला---"लेती जाओ ओ भिखारिन!"

निर्मल और भाभी को रामू की इस दया पर कुछ प्रसन्नता हुई, पर वे प्रकट न कर सके; क्योकि भिखारिन ऊपर की सीढ़ियों पर चढ़ती हुई गुनगुनाती चली जा रही थी---

"सुने री निर्धन के घन राम!"



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