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आकाश-दीप
 

देवकुमार हँस पड़ा। खेल समाप्त हुआ। नेरा को बहुत-सा पुरस्कार मिला।

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तीन दिन बाद, होटल के पास ही, चीड़-वृक्ष के नीचे चन्द्रदेव चुपचाप खड़ा था---वह बड़े गौर से देख रहा था---एक स्त्री और एक पुरुष को घुल-घुलकर बातें करते। उसे क्रोध आया; परन्तु न जाने क्यों, कुछ बोल न सका। देवकुमार ने पीठ पर हाथ धरकर पूछा---"क्या है?"

चन्द्रदेव ने संकेत से उस ओर दिखा दिया। एक झुरमुट में नेरा बडी है और रामू कुछ अनुनय कर रहा है! देवकुमार ने यह देखकर चन्द्रदेव का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहा---"चलो।"

दोनों आकर अपने कमरे में बैठे।

देवकुमार ने कहा---"अब कहो, इसी रामू के हृदय की परख तो तुम उस दिन बता रहे थे। इसी तरह सम्भव है, अपने को भी न पहचानते हो!"

चन्द्रदेव ने कहा---"में उसे कोड़े से पीटकर ठीक करूँगा---बदमाश!"

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चन्द्रदेव 'बाल' देखकर आया था, अपने कमरे में सोने जा रहा था, रात अधिक हो चुकी थी। उसे कुछ फिस-फिस का

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