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स्वर्ग के खाँडहर में
 

"आवश्यकता से प्रेरित होकर जैसे एक अत्यन्त कुत्सित मनुष्य धर्माचार्य बनने का ढोंग कर रहा है, ठीक उसी प्रकार मैं स्त्री होकर भी, पुरुष बनी। यह दूसरी बात है कि संसार की सबसे पवित्र वस्तु धर्म की आड़ में आकांक्षा खेलती है। तुम्हारे पास साधन हैं, मेरे पास नहीं, अन्यथा मेरी आवश्यकता किसी से कम न थी।"---लज्जा हाँफ रही थी।

शेख ने देखा, वह दृत सौंदर्य! यौवन के ढलने में भी एक तीव्र प्रवाह था---जैसे चाँदनी रात में पहाड़ से झरना गिर रहा हो? एक क्षण के लिये उसकी समस्त उत्तेजना पालतू पशु के समान सौम्य हो गई। उसने कहा---"तुम ठीक मेरे स्वर्ग की रानी होने के योग्य हो। यदि मेरे मत में तुम्हारा विश्वास हो, तो मैं तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ। बोलो।"

"स्वर्ग! इस पृथ्वी को स्वर्ग की क्या आवश्यकता है शेख? ना, ना, इस पृथ्वी को स्वर्ग के ठेकेदारों से बचाना होगा। पृथ्वी का गैरव स्वर्ग बन जाने से नष्ट हो जायगा। इसकी स्वाभाविकता साधारण स्थिति में ही रह सकती है। पृथ्वी को केवल वसुंधरा होकर मानव-जाति के लिए जाने दो, अपनी आकांक्षा के कल्पित स्वर्ग के लिए, क्षुद्र स्वार्थ के लिये, इस महती को, इस धरनी को, नरक न बनाओ, जिसमें देवता बनने के प्रलोभन में पड़कर मनुष्य राक्षस न बन जाय शेख?"--–लज्जा ने कहा।

शेख पत्थर-भरे बादलों के समान कड़कड़ा उठा। उसने

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