"नहीं मीना, सबके बाद जब मैं तुम्हें अपने पास ही पाता हूँ, तब और किसी आकांक्षा का स्मरण ही नहीं रह जाता। मैं समझता हूँ कि......"
"तुम गलत समझते हो......"
मीना अभी पूरा कहने न पाई थी कि तितलियों के झुण्ड के पीछे, उन्हीं के रंग के कौपेय वसन पहने हुए, बालक और बालिकाओं की दौड़ती हुई टोली ने आकर मीना और गुल को घेर लिया!
"जल-विहार के लिये रँगीली मछलियों का खेल खेला जाय।"
एकसाथ ही तालियाँ बज उठी। मीना और गुल को ढकेलते हुए सब उसी कलनादी स्रोत में कूद पड़े। पुलिन की हरी झाड़ियों में से वंशी बजने लगी। मीना और गुल की जोड़ी आगे-आगे, और, पीछे-पीछे सब बालक-बालिकाओं की टोली तैरने लगी। तीर पर की झुकी हुई डालों के अंतराल में लुक-छिपकर निकलना, उन कोमल पाणि-पल्लवों से क्षुद्र वीचियो का कटना, सचमुच उसी स्वर्ग में प्राप्त था।
तैरते-तैरते मीना ने कहा---"गुल, यदि मैं बह जाऊँ और डूबने लगूँ?"
"मैं नाव बन जाऊँगा मीना!"
"और जो मैं यहाँ से सचमुच चली जाऊँ?"
"ऐसा न कहो; फिर मैं क्या करूँगा?"
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