पृष्ठ:आकाश -दीप -जयशंकर प्रसाद .pdf/१८२

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
आकाश-दीप
 

गोधूलि थी और वही उदास रमला झील! साजन थका हुआ बैठा था। आज उसके मन में, आँखों में, न-जाने कहाँ का स्नेह उमड़ा था। प्रशान्त रमला में एक चमकीला फूल हिलने लगा; साजन ने आँख उठा कर देखा——पहाड़ी की चोटी पर एक तारिका रमला के उदास भाल पर सौभाग्य-चिह्न सी चमक उठी थी। देखते-देखते रमला का वक्ष नक्षत्रों के हार से सुशोभित हो उठा।

साजन ने उल्लास से पुकारा——"रानी!"


—— १७८ ——