जानते हो कि देहातों में भाटों का प्रधान काम है किसी अपने ठाकुर के घर उत्सवों पर प्रशंसा के कवित्त सुनाना । उनके घर की स्त्रियाँ घरों में गाती बजाती हैं। नंदन भी इसी प्रकार मेरे घराने का आश्रित भाट है । उसकी लड़की रोहिणी विधवा हो गई--
मैंने बीच ही में टोक कर कहा-क्या नाम बताया ?
जीवन ने कहा-रोहिणी । उसी साल उसका द्विरागमन होने वाला था। नदन लोभी नहीं है । उसे और भाटों के सहन मांगने में भी संकोच होता है । यहां से थोड़ी दूर पर गंगा किनारे उसकी कुटिया है। वहाँ वृक्षों का अच्छा मुरमुट है । एक दिन मैं खेत देख कर घोड़े पा रहा था। कड़ी धूप थी। मैं तदन के घर के पास वृक्षा की छाया में ठहर गया! नन्दन ने मुझे देखा | कम्बल बिछा कर उसने अपनी झोपड़ी में मुझे बैठाया मैं लू से डरा था। कुछ समय वहीं बिताने का निश्चय किया।
जीवन को सफाई देते देख कर मैं हँस पड़ा पर तु उसकी ओर ध्यान न देकर जीवन ने अपनी कहानी गंभीरता से विचलित न होने दी। हाँ तो नदन ने पुकारा रोहिणी एक लोटा जल ले आ बेटी ये तो अपने मालिक हैं इनसे लज्जा कैसी ? रोहिणी आई । वह उसके यौवन का प्रभात था. परिश्रम करने से उसकी एक एक नसें और मांस पेसियाँ जैसे गढ़ी हुई थीं । मैंने देखा-उसकी झुकी हुई पलकों से काली बरौनियां छितरा रही थीं और उन बरौनियों से जैसे करुणा की अदृश्य सरस्वती कितनी ही धाराओं में यह रही थी। मैं न जाने क्यों उद्विग्न हो उठा। अधिक काल तक वहां न ठहर सका | घर चला आया।
विजयादशमी का त्योहार था। घर में गाना-बजाना हो रहा था। मैं अपनी श्रीमती के पास जा बैठा। उन्होंने कहा-सुनते हो ? मैंने कहां दोनों कानों से।